पाजामे का नाड़ा बांधना आता है?
क्या करना है, इलास्टिक वाला है पाजामा!
जूतों में लेस बांधना?
कोई ज़रुरत नहीं, स्लिप-ऑन्स हैं!
पॉटी साफ़ करनी?
अरे कमोड में शॉवर है न!!
देख लीजिये, ये है आज की युवा पीढ़ी!
क्यों कोई मेहनत की जाए जब सब कुछ आसानी से पका-पकाया मिल ही रहा है|
जी हाँ, आज की पीढ़ी यही कहेगी कि ऐसा नहीं है, हम दिमाग लगाते हैं, सोचने का काम करते हैं पर सच में देखा जाए तो सोचने का काम कितना होता है, वो भी हम सब जानते हैं| स्मार्ट फ़ोन या आई पैड पर झट गूगल किया और मिल गए सारे सवालों का जवाब! भूख लगी तो झट से किसी स्मार्ट ऍप से पिज़्ज़ा या बर्गर आर्डर कर लिया| टैक्सी चाहिए, क्यों उठ के बाहर ढूंढने जाएँ, जब एक बटन दबाते ही टैक्सी घर के बाहर खड़ी होगी!
हर काम को आसानी से करने के हज़ार तरीके ईजाद हो चुके हैं|
यही कारण है कि आज के युवा या छोटे बच्चे जो कल देश का भावी भविष्य बनेंगे, उन्हें हम आम तौर पे दिमाग का कम से कम इस्तेमाल करते हुए देखते हैं! ऐसा नहीं कि यह पीढ़ी बेवकूफ है, बस मेहनत से जी चुरा रही है!
ये बात सच है कि अगर ज़रुरत नहीं है गधा मज़दूरी की तो क्यों की जाए, पर जब तक हमें हर काम खुद करने की आदत नहीं होगी, तब तक हमारे दिमाग का विकास कैसे होगा?
एक वक़्त था जब बचपन में माँ-बाप बच्चों को घर के कामों में शामिल करते थे| एक तरफ पिता अपने लड़कों को बिजली या प्लंबिंग के छोटे-मोटे काम साथ में सिखाते तो वहीँ माँएं लड़कियों को रसोई के और घर संभालने के काम सिखाती थीं| आज पूछ के देख लीजिये कि कितने लड़के-लड़कियां बिना किसी बाहरी मदद के एक दिन भी अपने घर को सलीके से संभाल सकते हैं!
तो दोस्तों टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कीजिये, उसका फायदा भी उठाईये, लेकिन उसपर अपना जीवन मत निर्भर कर बैठिये|
कहीं ऐसा न हो जाए कि आने वाले कल में हम में से कोई भी ऐसा न हो जो बिना किसी स्मार्ट ऍप की मदद के अपना नाम भी न बता सके!
कर लो यारों, थोड़ी मेहनत भी कर लो, अपने हाथ की बनी बिरयानी का मज़ा ही कुछ और होता है!