तिब्बती मुस्लिम – अक्सर कुछ लोग आस्तिव होकर भी आस्तिव को ढूंढते रहते है।
कुछ ऐसी ही कहानी है तिब्बती कश्मीरियों की । जिनका जिक्र बहुत कम होता है। शायद कुछ लोग तिब्बती कश्मीरियों के बारे में जानते तक नही होंगे ।
जन्नत जैसी कश्मीर कश्मीरी पंडितों के दर्द और आतंक की कहानियों के अलावा भी बहुत सी कहानियाँ बयां करता है। जिसे सुने वालों की देर है । जब आप कभी कश्मीर जाएंगे जो तो आप यहां तिब्बती मुस्लिमों की श्रीनगर में बसी एक पूरी कॉलोनी देखेंगे । जहां आपको तिब्बती खाना, तिब्बती लहाजा और तिब्बती स्कूल भी मिलेगा । तिब्बती मुस्लिम की इस काॅलोनी में आपको कइयों के घर में दलाई लामा की तस्वीर भी नजर आएगी । तिब्बती मुस्लिम दलाई लामा को अपना धर्म गुरु नही मानते । लेकिन क्योंकि उन्होंने उसका साथ दिया था। जिस वजह से ये उनकी काफी इज्जत करते है । तिब्बती मुस्लिम तिब्बत से लौटे हुए मुस्लिम है जिन्हे तिब्बत में तनाव के चलते कश्मीर की तरफ दोबारा पलायन करना पङा ।
हालांकि आज भी तिब्बत में आपको कई कश्मीरी मुस्लिम मिल जाएंगे । इन मुस्लिम परिवारों को तिब्बत में खाजो का कहा जाता है । आप सोच रहे होंगे कि “अगर तिब्बत में रहने वाले मुस्लिम भी कश्मीरी ही है तो ये तिब्बती मुस्लिम कौन है । “
पर सच तो ये है कि यही तो इन परिवारों की कहानी है ।
अगर ये तिब्बत में रहते तो भी इन्ही तिब्बती नसी समझा जाता। तिब्बती में रहने वाले दूसरे सुमदाय इन्हे खाजो यानि कश्मीरी कहकर बुलाते है और अगर ये कश्मीर लौटते है तो इन्हें यहां तिब्बती मुस्लिम कहलाते है । ये भी उसी असमंजस के दौर से गुजर रहे है कि आखिर हमारा आस्तित्व कहाँ है कश्मीर या तिब्बत ।
भारत की आजादी से पहले कश्मीर के मुस्लिम सिल्क के कपङो का व्यापार किया करते थे। ये लद्दाख तिब्बत जगहों में में व्यापार किया करते थे। जिन्हें तिब्बत में दलाई लामा ने रहने के लिए जमीने दी। ये कश्मीर मुस्लिम व्यापारी जाकर तिब्बत में बस गए और वहां की महिलाओं के साथ शादी की और घर बसा लिया। धीरे- धीरे ये मुस्लिम व्यापारी पूरी तरह तिब्बती लहजे में ढल गए । तिब्बती भाषा में अच्छी पकङ और तिब्बत लिबाज अच्छा से अपना लिया । लेकिन इसके बावजूद तिब्बती लोगों ने इन मुस्लिम व्यापरियों को कभी तिब्बती नाम का अधिकार नही दिया ये उन्हे खाचे यानि कश्मीरी बुलाते ।
1959 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के शासन के खिलाफ विद्रोह शुरु हुआ , जिसमें तिब्बत सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ । पार्टी के डर से दलाई लामा और उनके हजारों अनुयायी वहां से भाग खङे हुए। जिसका असर मुस्लिम व्यापरियों पर भी पङा तिब्बत के दूसरे समुदायों ने मुस्लिम समुदाय पर चीन कम्युनिस्ट पार्टी से मिले होने का आरोप लगाया । जिस वजह से इन व्यापरियों को हर तरफ से तनाव का सामना करना पङा । लेकिन आखिर में चीन सरकार की मंजूरी के चलते इस मुस्लिम समुदाय वापस कश्मीर लौटने का मौका मिला । कुछ मुस्लिम व्यापरियों को छोङ सभी वापस कश्मीर लौट गए । इसमें भारत सरकार ने भी उन शरणार्थियों का साथ दिया । लेकिन इसमें सबसे बङी परेशानी ये थी कि इस तिब्बती मुस्लिम समुदाय को साबित करना पङा कि ये मूल रुप से कश्मीर के ही है तभी इन्हे कश्मीर में जमीन दी जाएगी । खैर आज इन शरणार्थियों ने पूराने कश्मीर में एक तिब्बती काॅलोनी बसाई है जहां ये सब रहते है ।
लेकिन कभी सिल्क के बङे ये व्यापारी पहले के मुकाबले बहुत कम वेतन वाली नौकरी पर निर्वाह कर रहे है । हालांकि आस्तित्व की लङाई आज भी जारी है । और शायद एक दिन ऐसा आए जब या तो इन्हे पूर्ण रुप से तिब्बती माना जाए या फिर पूर्ण रुप से कश्मीरी ।
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