गांधीजी की धोती पहनने की वजह – गांधी जी के चंपारण आंदोलन को 100 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन गांधी जी के लिए ये सफर आसान नहीं था। जब वे चंपारण आए थे तो यहां के आम लोग उन्हें जानते भी नहीं थे।
चंपारण आंदोलन के शुरुआती दिनों में बापू को कई प्रकार का संशय था। बापू सोचते थे कि नील की खेती करने वाले किसानों में क्या वह संबल और साहस है कि वो अंग्रेज़ों के खिलाफ जुबान खोल सकें। उस समय खुद गांधी जी को लगा था कि वो गिरफ्तार हो जाएंगें। जब गांधी जी चंपारण में हाथी पर सवार होकर उस किसान के घर जा रहे थे जिस पर निलका साहबों ने अत्याचार किया था तो रास्ते में उन्हें पुलिस सुपरिटेंडेंट का बुलाव आ गया।
वे 16 अप्रैल 1917 को जसुलीपट्टी जा रहे थे। रास्ते में चंद्रहिया गांव के पास उन्हें चंपारण से चले जाने का नोटिस दिया गया था। इससे पूर्व वह मुजफ्फरपुर में 11 अप्रैल को वहां के कमिश्नर मिस्टर एल.एफ मोर्शैड से मिल चुके थे। मोर्शैड से पूर्व बापू बिहार प्लांटर्स एसोसिएशन के मिनिस्टर जे. एम विल्सन से भी मिल चुके थे।
इन दोनों ने ही बापू को नील के किसानों के मामले में दखल देने से मना कर दिया था। बापू तब भी नहीं रूके और नील के किसानों के लिए सत्याग्रह पर बैठ गए। तीन औरतों की गवाही चंपारण सत्याग्रह में अनेक लोग शामिल हुए। गांधी जी का ये अभियान सत्याग्रह तक सीमित नहीं था।
सत्याग्रह के दौरान गांधी जी किसानों पर हो रहे अत्याचारों की गवाही ले रहे थे। उस समय एक ही परिवार की तीन महिलाओं को गवाही देने आना था लेकिन उन तीनों के पास बस एक ही साबुत साड़ी थी। एक साड़ी की वजह से तीनों एकसाथ नहीं आ सकती थीं।
ऐसे में एक महिला गवाही देने आती और उसके घर वापिस जाने पर दूसरी महिला वही साड़ी पहनकर गवाही देने आती थी और फिर तीसरी महिला। इस बात ने बापू को दुख से अंदर तक उद्वेलित कर दिया था। तभी उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि पहला चंपराण किसानों को तीन कठिया प्रथा से मुक्ति दिलाएंगें और दूसरा देश में ऐसे भी लोग हैं जिनके पास तन ढकने के लिए कपड़ा तक नहीं है। ऐसे में वे भी ताउम्र कम कपड़ों में ही अपना जीवन निर्वाह करेंगें।
ये थी गांधीजी की धोती पहनने की वजह – अपने इसी प्रण को पूरा करते हुए मरते दम तक गांधी जी बस धोती पहना करते थे।