भारतीय इतिहास के पन्नों को पलट कर देखा जाए तो उसमें एक ऐसे दौर का जिक्र भी मिलता है जब भारत पूरी दुनिया में विश्वगुरू के तौर पर अपनी एक अलग पहचान रखता था और पूरा विश्व भारत को सोने की चिड़िया के तौर पर जानता था.
सोने की इस चिड़िया पर बाहरी लोगों ने बार-बार आक्रमण किए और यहां की दौलत लुटकर लुटेरे अपने-अपने देश ले गए. इस देश की संपन्नता को देखकर ही अंग्रेजों ने भी भारत की सर जमीं पर आकर इस सोने की चिड़िया को गुलामी की जंजीरों में जकड़ कर रख लिया.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत को सोने की चिड़िया कहकर सबसे पहले किसने संबोधित किया था और किसकी वजह से भारत को सोने की चिड़िया का यह खिताब मिला.
तो चलिए आज हम आपको भारत के उस महान शख्स के बारे में बताते हैं जिसने सोने की चिड़िया का खिताब देकर भारत के गौरव में चार चांद लगा दिया.
राजा विक्रमादित्य की वजह से भारत बना सोने की चिड़िया
भारतीय इतिहास में एक ऐसा भी वक्त आ गया था जब देश में बौद्ध और जैन रह गए थे और सनातन धर्म विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गया था. तब सनातन धर्म के अस्तित्व को बचाने का काम उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने किया.
सूर्य के समान पराक्रमी राजा विक्रमादित्य को उनके ज्ञान, धर्म, न्याय, वीरता और उदारता के लिए जाना जाता था. उन्होंने रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों की फिर से खोज कर उन्हें स्थापित किया और इसके साथ ही कई मंदिरों का निर्माण भी करवाया.
राजा विक्रमादित्य ही वो महान राजा थे जिन्होंने भारत को सोने की चिड़िया का खिताब दिया था. आपको बता दें कि विक्रमादित्य के नवरत्न उज्जैन के राज दरबार की शोभा बढ़ाया करते थे.
विक्रमादित्य का राज दरबार सिर्फ नवरत्नों की वजह से ही नहीं बल्कि यहां की न्याय प्रणाली के कारण सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुआ करता था. यही वजह है कि कई बार देवतागण भी महाराज से न्याय करवाने के लिए आते थे. उन्होंने धर्म की रक्षा करने के साथ-साथ प्रजा की रक्षा और उनकी आर्थिक स्थिति का भी अच्छे से ख्याल रखा.
राजा विक्रमादित्य ने क्यों दिया भारत को यह खिताब ?
राजा विक्रमादित्य के शासनकाल में भारत में सोने के सिक्कों का चलन काफी ज्यादा था. उस दौरान विदेशी व्यापारी यहां से कई चीजों का व्यापार करके जाते थे और बदले में सोना दे जाते थे. जिसकी वजह से भारत में अत्यधिक मात्रा में सोना था.
उस दौरान भारत हर तरह से एक संपन्न देश हुआ करता था और विदेशी यहां की वस्तुओं का व्यापार करने के लिए आते थे, बदले में सोना दे जाते थे. भारत की संपन्नता और सोने के सिक्कों के चलन ने भारत को दुनिया भर में सोने की चिड़िया बना दिया.
दक्षिण भारत के पद्मनाभस्वामी मंदिर में छुपे हजारों टन सोने के अलावा कोहिनूर हीरा और मोर सिंहासन जैसी बहुमूल्य चीजों से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्राचीन काल में भारत और उसके निवासी कितने ज्यादा अमीर और संपन्न रहे होंगे.
गौरतलब है कि पराक्रमी और शूरवीर राजा विक्रमादित्य ने ही भारत को पहली बार सोने की चिड़िया का खिताब दिया था. आज भले ही भारत दूसरे देशों से काफी पीछे है फिर भी इसके सुनहरे इतिहास को जानकर हर भारतीय खुद को गौरवान्वित महसूस करता है.