किन्नरों का जन्म – भगवान ने केवल दो ही तरह के प्राणियों का निर्माण किया था, स्त्री और पुरूष – लेकिन प्रकृति ने एक और प्राणी बनाया हैजिन्हें ना तो नर कहा जा सकता है और ना ही मादा।
इन्हें समाज में किन्नर और हिजड़ा के नाम से जाना जाता है। दरअसल किन्नर वो हैं जिनका जनन अंग जन्म से मृत्यु तक एक जैसा होता है।
पर्सनैलिटी द्वारा अगर इनका वर्णन किया जाए तो यह पुरूष और स्त्री का मिश्रण होते हैं।
इनमें पुरूष और स्त्रियों के गुण एक समान पाये जाते हैं। लेकिन इनके रहने और पहनावे का तौर-तरीका सबसे भिन्न होता है।
पुराणों की मानें तो किन्नरों का जन्म उनके पुराने गुनाहों के कारण हुआ था और इनको राजा-महाराजाओं के दरबारों की रक्षा के लिए रखा जाता था। पौराणिक गाथा महाभारत में वर्णन है कि पांडव अर्जुन को भी कई वर्षो तक किन्नर के रूप में रहना पड़ा था।
किन्नरों का राज दरबार मुगल दरबार में अलग से लगाया जाता था। ज्योतिषों की मानें तो यदि बच्चे के जन्म लेते समय 8 ग्रह शुक्र पर विराजमान हों और उन्हें शुक्र और सूर्य नहीं देख रहा हो तो बच्चा किन्नर पैदा होता है।
दूसरी ओर वैज्ञानिकों की मानें तो जन्म के समय अगर स्पर्म की अधिकता ज्यादा हो तो लड़का और ओवन की अधिकता ज्यादा हो तो लड़की पैदा होती है, लेकिन यदि दोनों की मात्रा एक समान हो तो बच्चा नपुंसक पैदा होता है और वह किन्नर कहलाया जाता है। इस तरह से किन्नरों का जन्म होता है.
भारत में किन्नरों को विशेष स्थान प्राप्त है। भारतीय समाज में किन्नरों को स्त्री और पुरुषों जितना सम्मान दिया जाता है। लेकिन फिर भी ऐसे कई लोग हैं जो इनसे दुर्व्यवहार करते हैं, जो कि बिलकुल ही गलत है। आखिर किन्नर भी इंसान ही होते हैं और इनके पास भी दिल होता है। इसलिए किसी भी व्यक्ति को यह अधिकार नहीं है कि वह उनसे दुर्व्यवहार करे।
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