‘सरदार जी, 12 बज गए!’
इस आर्टिकल को पढने के बाद आपको इस वाक्य को दोहराने में शर्म आएगी, यह मेरा आपसे वादा है.
लोगों को क्या हक है कि वे ऐसे समुदाय का इस तरह भद्दे तरीके से मज़ाक बनाते हैं जिसने भारत देश को विश्व भर में एक ऐसी पहचान दी है कि इस मामले में शायद ही कोई इनकी जगह ले सके. मिल्खा सिंह पहले भारतीय थे जिन्होंने ओलिंपिक के ट्रैक प्रतियोगिताओं में दुनिया को बताया कि अगर हम भारतीयों को सही तरीके से मौका दिया जाए तो क्या नहीं कर सकते!
हम आपके सामने लाए हैं वे 4 बातें, कैसे सिखों ने भारतवासियों और दुनिया भर के लोगों को बता दिया कि सिख वाकई में शेर होते हैं.
1) सरगढ़ी का युद्ध.
ये वह युद्ध है जिसके बारे में जानकर हर एक भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा उठ जाता है और और हर एक बंदा/बंदी सिखों की दिलेरी के फैन बन जाते हैं.
तो हुआ यह था कि 12 सितम्बर 1897 के दिन 21 सिख जवान 12000 अफ्घानी लड़ाकों से भिड गए. यह युद्ध इसलिए हुआ था कि सिख रेजिमेंट के सैनिकों को पाकिस्तान के इस इलाके में अपना अपना आर्मी पोस्ट अफ्घानी आतंकवादियों से बचाए रखना था. नतीजा यह हुआ कि 21 महान सिख सैनिक मारे गए लेकिन साथ-साथ करीब 500 अफ्घान लड़ाके भी मारे गए.
इन 21 सिख सैनिकों ने अफ्घानी लड़ाकों को उनकी नानी याद दिला दी!
2) मिल्खा सिंह.
इनके बारे में जितना बोला जाए उतना कम है. खेल क्षेत्र में भारत की तरफ से इनका योगदान कमाल का है.
1958 एशियाई गेम्स, टोक्यो, 200 मीटर- गोल्ड
1958 एशियाई गेम्स, टोक्यो, 400 मीटर- गोल्ड
1962 एशियाई गेम्स, जकार्ता, 400 मीटर- गोल्ड
1962 एशियाई गेम्स, जकार्ता, 4*400 मीटर रिले दौड़- गोल्ड
और अन्य कई मेडल और पुरस्कारों से मिल्खा सिंह जी को सम्मानित किया जा चूका है. वे 80 की उम्र पार कर चुके हैं लेकिन आज भी उतने ही फिट और तरो ताज़ा लगते हैं.
3) अमृता प्रीतम
अगर सिख शेर होता है तो एक सिखनी, शेरनी!
सिख औरतें खुदको किसी भी मर्द के पीछे नहीं मानती. उनकी कार्यकुशलता और दूसरों के ऊपर निर्भर ना होना हमेशा उनकी हिम्मत को सबके सामने बड़े शानदार तरीके से दिखाता है. बात की जाए अमृता प्रीतम की.
वे शायद 20वी सदी की भारत की सबसे महान लेखिका थीं. पंजाबी में लिखी इनकी कविताएँ, इनकी कहानियां और इनकी किताबें सिखों और भारत-पकिस्तान विभाजन के अनकहे सत्यों पर से बड़ी बेदर्दी से पर्दा उठा देती हैं. भई कवी हो तो ऐसा!
4) हरभजन सिंह
खेल की दुनिया का एक और सिख शेर.
2001 में जब ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हरभजन सिंह पहली बार टेस्ट में भारत की तरफ से मैदान में उतरे थे तब एक ही चीज़ उनके दिल में भरी हुई थी, और वह थी देश के लिए खेलने की इच्छा! इसी इच्छा और इसी ज़िद ने इन्हें आज इस मकाम तक पहुंचाया है. आज के समय में वे उन तीन महान भारतीय गेंदबाजों में शामिल हैं जिन्होंने टेस्ट में 400 से ज़्यादा विकटें ली हैं.
भारत के स्पिन गेंदबाजी की कमान सम्हाले हरभजन सिंह ने अपने बुरे समय में खुद पर विश्वास रखा और हर एक बाधा का बड़ी बहादुरी से सामना किया.
अब आप ही बताएँ, जो लोग बोलते हैं कि सरदारों के पास कम दिमाग होता है, क्या वे सही हैं?
और अगर भविष्य में कोई आपको फिर ये बोले कि सरदार जी, 12 बज गए हैं, तो आप उसे इन महान सिखों के बारे में बताएँ, यकीन मानिए!
उसी के 12 बज जाएंगे!
जय हिंद!
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