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अघोरी साधुओं के बारे में 5 ऐसी चीज़ें जिन्हें आप नहीं जानते

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम
उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात

अघोरत्व!

भारतीय संस्कृति का वह हिस्सा जो ‘शाम’ की तरह है! ना ‘दिन के उजाले’ में और ना ही ‘रात के अँधेरे में’.

जो लोग इसे नहीं समझते वे इसकी निंदा करते हैं और जो समझते हैं वे इसके बारे में अच्छी बातें करना नहीं चाहता और अघोरियों के बारे में ऐसी कई चीज़ें हैं जिन्हें सामाजिक तौर पर निषेध माना जाता है.

हम आपके सामने लाए हैं अघोरियों का बारे में 5 ऐसी सच्चाइयां जिन्हें आप शायद नहीं जानते.

1) मृत शरीरों के साथ यौन क्रियाएं
अघोरियों का मानना है कि देवी काली को संतुष्ट करने के लिए वे मृत शरीरों को खाते हैं और मृत शरीरों के साथ यौन क्रियाएं करते हैं. जब काली को संतुष्टि चाहिए होती है तो वे एक ऐसे मृत शरीर को खोज निकालते हैं जिसके साथ यौन सम्बन्ध बनाया जा सके और फिर उसके बाद उन काम्क्रोधी क्रियाओं में लीन हो जाते हैं. इसका उद्देश्य बेहद सरल है, अघोरियों का मानना है कि वे सबसे मलीन चीज़ों में भी शुद्धता ढूंढते हैं और अगर यह करते हुए भी उनका ध्यान शिव यानी परमपूज्य पर रहा तो इसका मतलब वे सही राह पर चल रहे हैं.

2) एक अघोरी अपने दिल में कभी भी नफरत पनपने नहीं देता
ऐसा माना जाता है कि अघोरियों और ‘नफरत’ का दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं है. अगर एक अघोरी के सीने में किसी व्यक्ति या किसी चीज़ के प्रति नफरत पैदा होने लग गई तो वह अघोरत्व से जुदा हो जाता है. अघोरी अपना खाना गायों, कुत्तों और अन्य जीवों के साथ मिल-बाट कर खाते हैं और उन्हें इन सभी जानवरों के साथ अपना खाना बाटने में कोई घृणा नहीं आती. इससे पता चलता है कि अघोरियों का दिल नफरत से अलग होता है.

3) एक अघोरी को मौत से डर नहीं लगता.
मौत के डर से परेह इनका व्यक्तित्व हमेशा आज़ाद विचारोंवाला होता है. खुद शमशान घाटों पर सोनेवाले, राख से नहाने वाले, कपाल में मदिरा सेवन करने वाले, आखिर मौत से क्यों डरने लगे?

4) शमशान घाट में ध्यान लगाना
रात के समय जब सभी लोग डर के मारे शमशान घाट के आस पास भी नहीं घूमते, अघोरी साधू वहाँ आँखें बंद करके, ठाट से बैठकर, कपाल अपने सामने रखकर, ध्यान लगाते हैं. वाह अघोरियों! मैं आपकी इज्ज़त करता हूँ!

5) मृत शरीरों को खाना
अघोरी मृत शरीरों की खोपड़ियों से कपाल बनाते हैं और फिर शरीरों के कुछ हिस्सों को खा भी लेते हैं. वे  मलमूत्र का सेवन करने के लिए भी प्रसिद्ध हैं. उनका मानना है कि यह श्रृष्टि शिव ने बनाई है तो फिर इस श्रृष्टि में कोई भी चीज़ मलीन कैसे हुई?

गौर से अगर देखा जाए तो अघोरत्व बचपने की तरह होता है.

एक शिशु के लिए कोई भी चीज़ अच्छी या बुरी नहीं होती, आगे चलकर उसे अच्छा बुरा सिखाया जाता है.

एक छोटा शिशु अपनी माँ को लात मारता है क्योंकि उसे पता नहीं होता कि यह चीज़ बुरी है. ठीक इसी तरह अघोरी भी एक शिशु बनकर शिव से सम्बन्ध कायम करने की कोशिश करते हैं.

धन्यवाद!

Durgesh Dwivedi

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