नेस्ले और मैगी की दिन-ओ-दिन बढ़ रही बर्बादी के क़िस्से तो आप सब जानते ही हैं|
हालात अब यहाँ तक आ पहुँचे हैं कि नेसले ने खुद ही अपने सबसे ज़्यादा लोकप्रिय ब्रांड मैगी को बाज़ार से उठवाने के आदेश दे दिए हैं!
अभी तक ये साफ़ नहीं हुआ कि सच में मैगी हमारे लिए हानिकारक है या नहीं, लेकिन जाने क्यों ऐसा लग रहा है जैसे कि सब कुछ जल्द-बाज़ी में, आनन-फ़ानन में किया जा रहा है|
आईये आपको बतायें कुछ ऐसे राज़ जो आपको सोचने पर मजबूर कर देंगे!
१) कौन हैं वि.के.पाण्डेय?
यह वो अधिकारी हैं जिन्होंने सबसे पहले मैगी के कुछ सैंपल्स का टेस्ट किया, उत्तर प्रदेश में और जांच की रिपोर्ट्स के बाद बताया कि कैसे मैगी इंसानों के खाने के लिए ठीक नहीं है| यही वो अफ़सर हैं जिन्होंने कुछ साल पहले ब्रिटानिया कंपनी के खिलाफ भी मुहीम छेड़ी थी उनके केक्स की पैकिंग के सिलसिले में| इस बार इनका निशाना बनी नेस्ले कंपनी|
२) जांच ठीक से हुई कि नहीं?
नेस्ले कंपनी ने अपनी जांच करवाई और सरकारी जांच अलग प्रयोगशाला में हुई| दोनों के ही परिणाम अलग हैं तो किस पर यकीन किया जाए? दोनों प्रयोगशलाएँ मान्यता-प्राप्त हैं!
३) किसी राज्य में ठीक, किसी में गलत?
एक तरफ महाराष्ट्र, गोवा कहते हैं मैगी में कोई खराबी नहीं है, वहीँ दिल्ली और उत्तर प्रदेश कहते हैं कि मैगी में लेड की मात्रा ज़रुरत से अधिक है? ये मापदंड में फ़र्क है या अलग-अलग प्रयोगशालों की कार्यक्षमता पर सवाल?
४) लेड हर जगह है!
वैज्ञानिकों के मुताबिक, लेड दुनिया भर में हर जगह मौजूद है, ज़मीन में, पानी में, हवा में और इसीलिए खाने के सामान में उसकी एक मात्रा बाँध दी गयी है जो इंसानी उपयोग के लिए जायज़ है| लेकिन सिर्फ मैगी को ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है? दूसरे किसी खाने के सामान को क्यों नहीं?
५) राजनीती
क्या इस सब के पीछे किसी तरह की राजनीती है? क्या नेस्ले ने उत्तर प्रदेश सरकार को या केंद्रीय सरकार को चंदा देने से मना कर दिया है? सिर्फ एक ही कंपनी के पीछे सब हाथ धो कर क्यों पड़े हैं? कहीं इस सब का लेना-देना आने वाले चुनावों से तो नहीं?
६) मैगी ब्रांड का क्या?
एक ब्रांड को बाज़ार में स्थापित करने में कई साल और हज़ारों करोड़ रुपये लग जाते हैं| मैगी करीब ३० साल से भारत में है और पहले १८ साल यह ब्रांड नुक्सान में था! अब फिर से लोगों के दिलों में जगह बनाने में जाने कितना वक़्त लगेगा!
७) ब्रांड एम्बेसडर कैसे ज़िम्मेदार?
अमिताभ बच्चन, माधुरी दिक्सित, प्रीटी जिंटा सिर्फ एक ब्रांड को प्रमोट कर रहे हैं| अगर इतने साल से सरकार नहीं जान पायी कि मैगी खाने लायक है या नहीं, तो यह बेचारे सेलिब्रिटी कैसे जानेंगे? इनके ख़िलाफ़ केस करके सिवाए प्रचार के और क्या मिलेगा?
८) आर्थिक मुआवज़ा
आगर नेस्ले ग़लत है तो सजा भुगतनी पड़ेगी| लेकिन अगर वो ग़लत नहीं हैं तो क्या सरकार उनके आर्थिक नुक्सान का मुआवज़ा देगी? विदेशों में ऐसा हुआ होता तो कंपनी सरकार को कोर्ट में खींच सकती थी हज़ारों करोड़ के दावे के साथ!
९) अन्य खाद्य पदार्थ और तम्बाकू-गुटखा
सिर्फ मैगी ही क्यों, क्यों नहीं हर खाने के सामान की ऐसी ही जांच हो? और उस से भी ज़्यादा, अगर मैगी इतनी ज़्यादा ख़तरनाक है, तो यह बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू सेहत के लिए फायदेमंद हैं? क्यों इन्हे बैन नहीं किया जा रहा? ज़ाहिर सी बात है, इनसे ज़्यादा पैसा कमाने को मिलता है बजाये मैगी जैसे उत्पाद से!
१०) प्रशिक्षित वैज्ञानिक
ऐसा नहीं कि हमारे देश में प्रशिक्षित कर्मी नहीं हैं लेकिन एक ही प्रोडक्ट की जांच के अलग-अलग नतीजे आना कहीं न कहीं ये बताता है कि जांचकर्ता में कहीं कुछ कमी है| या फिर जांच के उपकरण आधुनिक टेक्नोलॉजी के नहीं हैं|
मैगी ग़लत है या सही, इतना तय है की हमारी सरकार का इस मुद्दे को सँभालने का तरीका और सोच बिलकुल सही नहीं है| या तो पहले ही ठीक से जांच हो या फिर इस सारी कार्यप्रणाली का संचालन ज़िम्मेदारी और संवेंदनशीलता से हो!