ज़रा देख लो यार कहीं सुसु तो नहीं निकल गया स्ट्रिक्ट मम्मी पापा का नाम सुनते ही?
अच्छा-अच्छा मैं मज़ाक नहीं उड़ाऊँगा पर यह तो सब जानते हैं कि मम्मी-पापा स्ट्रिक्ट हों तो ज़िन्दगी कितनी झंड सी हो जाती है| बचपन ऐसे दिखाई देता है जैसे पिलपिला सा आम! सड़ा हुआ, बेरंग और मन करे कि कूड़े में उठा के फ़ेंक दो!
ज़रा यह 10 बातें पढ़ के बताओ कि तुमने भी यही सब झेला है या इस से भी बदतर?
1) एग्ज़ाम के रिज़ल्ट वाला दिन याद है? एक रात पहले से ही बाथरूम के चक्कर लगने शुरू हो जाते हैं और रिपोर्ट कार्ड हाथ में आते-आते ऐसा लगता है जैसे पसीने की दूकान खोल ली हो! बस कमी होती है तो डायपर की! है ना?
2) दोस्तों के साथ पार्टी करनी हो या कहीं घूमने जाना हो तो उसकी परमिशन माँगने के लिए ही एक जन्म कम लगता है! पापा जी का झापड़ या मम्मी की डाँट सपनों में भी पीछा नहीं छोड़ती!
3) ग़लती से घरवालों के साथ किसी पार्टी में चले भी गए और कहीं किसी ने कहा कि आओ डाँस करें, तो सिर्फ स्कूल की पी टी याद आती है! अब मम्मी पापा को कैसे बता दें कि माइकल जैक्सन के असली उत्तराधिकारी तो घर में ही हैं, क्यों?
4) टीवी क्या होता है यार? हाँ घर में एक चकोर सी चीज़ तो देखी है, कभी-कभी उस पर ट्यूबलाइट की रौशनी पड़ती है तो ख़ूब चमकती है वो! उस में आवाज़ें तभी आती होंगी जब आप को कमरे में किताबों के साथ क़ैद कर दिया जाता होगा, है ना?
5) बड़ी मुश्किल से मोबाइल फ़ोन मिला है, गेम्स डाल के जूते थोड़े ही खाने हैं? ऐसा ही होता है स्ट्रिक्ट मम्मी पापा के बच्चों के साथ| फ़ोन तो मिलता है लेकिन एक डब्बे की तरह जिस में अपनी मर्ज़ी का कुछ नहीं होता! उसका इस्तेमाल सिर्फ़ इसलिए कि घरवालों को पता रहे आप कब कहाँ क्या कर रहे हैं!
6) जोक्स और चुटकुले वो भी लड़के-लड़कियों के? तौबा-तौबा, ऐसा दिन आ गया तो वो दुनिया का आख़री दिन होगा! मम्मी पापा के सामने सिर्फ़ सीरियस बातें पढ़ाई-लिखाई की और चुप-चाप खाना खा के सो जाना! यही मस्ती की परिभाषा है!
7) ऑपोज़िट सेक्स के साथ दोस्ती के बारे में तो सोचना भी पाप है! इतने छित्तर पड़ने की उम्मीद बन जाती है कि लगता है अगले दो-चार जन्मों के पापों की सज़ा तो एक ही बार में मिल गयी!|
8) खाने-पीने में दाल-रोटी और घास-फूस ही मिलता है| अगर अपने दोस्तों की तरह पिज़्ज़ा और बर्गर खाना हो तो भगवान से यही प्रार्थना करनी पड़ती है कि मम्मी पापा को सद्बुद्धि दो! भगवान सुनता नहीं और आपकी व्यथा का निदान होता नहीं!
9) मम्मी पापा से दोस्ती? कब, कहाँ, कैसे? यह होती है भी? कौन सी दुनिया में? ऐसी बातें सुन के ऐसा लगता है जैसे एलियंस धरती पर उतर आये हों और शाम के खाने पर इन्वाइट कर रहे हों!
10) दोस्त, कपड़े, घूमने जाने की जगह, वक़्त और कंपनी, यहाँ तक कि क्या बोलना है और कैसे बोलना है यह भी मम्मी पापा की परमिशन के बिना करना नामुमकिन है! बस अब तो लगता है कि कौन सी साँस लेनी है और कौन सी छोड़नी, यह भी उनसे ही पूछना पड़ेगा!
पर जैसे भी हों यार, मम्मी पापा का यही प्यार और स्ट्रिक्ट्नेस ज़िन्दगी में कुछ कर पाने के क़ाबिल बनाती है!
वैसे थोड़ी मस्ती करने दें वो तो कुछ बुराई भी नहीं है, है ना?