बचपन…
सबके लिए यादों का पिटारा..
और हर पीढ़ी का बचपन अलग अलग होता है. आज के दौर का बचपन स्मार्ट फ़ोन, टेबलेट और प्ले स्टेशन वाला है. पर इस बचपन में वो बात कहाँ जो पहले के मासूम बचपन में थी. जब 80 और 90 के दशक में उदारीकरण हुआ और बाहर की चीज़ें हमारे देश में आने लगी.
कुछ ऐसी चीज़ें जिन्हें शायद आज की पीढ़ी पुराना समझती है या फिर शायद जानती भी नहीं है पर 80-90 के दशक के बच्चों और किशोरों के लिए वो सब उस समय बहुत ही आकर्षक चीज़ें थी और उन छोटी छोटी चीज़ों से उनका बचपन लड़कपन जुड़ा था.
3-D शार्पनर याद है वो चाइना का शार्पनर जिसके एक तरफ खुशबु वाला इरेज़र और दूसरी तरफ ब्रश होता था पीछे की तरफ एक 3D कार्टून की तस्वीर.
वॉकमैन –ये एक क्रांति से कम नहीं था, चलते फिरते संगीत. फिल्मों से लेकर असल दुनिया में पागलपन की हद तक दीवानगी थी वॉकमैन के लिए
वॉकमैन की ही तरह 2 इन 1 भी उस ज़माने के करामाती आविष्कारों में से था, अरब देशों में नौकरी के लिए जाने वाले लोग भारत वापसी के समय अक्सर नेशनल का कैसेट प्लेयर साथ ज़रूर लाते थे और उसमे निप्पो के सेल डाल कर कंधे पर रख घूमते नज़र आते थे
फ्लॉपी डिस्क – आज के बच्चे जो तेरा बाइट में बात करते है उनको यदि ये बताये की पिछली पीढ़ी स्टोरेज के लिए फ्लॉपी इस्तेमाल करती थी जिसमे कुछ मेगा बाईट डाटा ही आता था और उसी में डेव जैसे गेम लोड किये जाते थे
स्पोर्ट्स शूज – ये तो आज भी आते है पर अब ब्रांड इंटरनेशनल हो गए है. आदिदास, नाइकी से नीचे बात ही नहीं होती और तब सबका सपना होता था एक्शन के कैंपस या लिबर्टी के फ़ोर्स10. आज भी याद आता है वो अक्षय कुमार की तरह ढीली बड़ी कॉलर वाली शर्ट और कमर के ऊपर तक बंधी टाइट जीन्स के साथ सफ़ेद स्पोर्ट्स शूज .
च्युइंग गम तो काफी पहले से आती थी पर जो कमाल बिग बबल और बुमेर के आने पर हुआ था वैसे कभी नहीं हुआ. जहाँ बिग बबल ने दो च्युइंग गम के साथ एक कॉमिक दिया वहीँ बूमर पहली बार टैटू का कांसेप्ट लायी और हर बच्चे के हाथ में नीला बूमर मैन दिखाई देने लगा .
विडियो गेम – कुछ समय बात हैंडी विडियो गेम और मीडिया के टीवी विडियो गेम आये और फिर तो बच्चों और किशोरों में होड़ लग गयी नयी नयी स्टेजेस पार करने की .कॉण्ट्रा, मारिओ, डक हंट, ब्रायन लारा क्रिकेट जहाँ टीवी कंसोल के सबसे फेमस गेम थे वहीँ टेकन और मोर्टल कॉम्बैट गेम पारलर में 1 रूपया टोकन में सबसे पोपुलर थे. आज के hd ग्राफ़िक्स के ज़माने में भी हम सबको वो 64 बिट गेम्स बहुत याद आते है.
रोल कैमरा – याद है 36/24 फिल्म वाली रोल और कैमरा . याशिका, कोडक, कोनिका, हॉट शॉट. रोल लोड करो और क्लिक करो. और फिर इंतज़ार करो रोल ख़त्म होने का और तब जाकर रोल डेवेलोप होगी और फोटोज मिलेगी . उनमें से भी कितनी फोटो अच्छी होगी और कितनी ख़राब . पर असली फोटोग्राफी वही थी आजकल की तरह नहीं के बस क्लिक किया और देख लिया डिजिटल स्क्रीन पर अच्छी लगी तो सेव नहीं तो दूसरी ना ही पहले सेल्फी लेने का विकल्प था फॅमिली फोटो लेनी हो या सिंगला कोई ना कोई चाहिए जो फोटो क्लिक कर सके. आज की पीढ़ी को क्या पता उस रोमांच का, उस इंतज़ार का जो रोल वाले कैमरा से फोटो खींचने के बाद फोटो डेवेलोप होने तक मिलता था .
कंपास बॉक्स/ पायलट पेन – स्केल सेट स्क्वायर पेंसिल इरेज़र और भी ना जाने क्या क्या. उस समय मिलने वाला कैमलिन का ये बॉक्स किसी जादू के पिटारे से कम नहीं था . आधे से ज्यादा चीज़ों का इस्तेमाल भी पता नहीं था फिर भी हर इम्तेहान से पहले जिद करके एक नया बॉक्स खरीदा जाता था. स्याही के पेन के ज़माने में सबकी एक ही इच्छा होती थी लक्ज़र का सफ़ेद वाला पायलट पेन. जिसके पास वो पेन होता था वो राजा.
कॉमिक्स – इस ज़माने की हाई क्वालिटी ग्राफ़िक्स वाली नहीं यहाँ बात हो रही है हाथ से ड्रा की गयी कॉमिक्स के चाचा चौधरी , बिल्लू, नागराज, डोगा,ध्रुव, तौसी, फाइटर टोड्स. गर्मियों की छुट्टियों में किराये पर खरीद कर पढना या स्कूल के समय दोस्तों से अदल बदल कर पढना और हाँ शायद ही कोई भूल सकता है कक्षा में जब मास्टर जी पढ़ा रहे हो तो किताब के बीच रखकर कॉमिक्स पढ़ना
ये सब पल बस उन्होंने ही जिए है जो अस्सी और नब्बे के दशक में पैदा हुए है और आज भी भूले बिसरे इनमें से कोई चीज़ दिख जाती है तो लगता है की किसी तेज़ हवा के झोंके ने यादों की डायरी खोल दी है
ये सब वो चीज़ें है जिनके बारे में आज की पीढ़ी ना तो जान सकती है ना ही इनसे जुडी यादों को समझ सकती है.
तो फिर क्या सोचा आज ? नया जूता खरीदने का या फिर नागराज की कॉमिक्स लाने का या फिर वॉकमैन में बैटरी डाल कर फिर से माइकल जैक्सन की धुनों पर नाचने का .
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