अपने जीवन में कौन सफल होना नहीं चाहता हैं और यदि सफलता पाने का गुरु मन्त्र ऐसे स्वामी भक्ति से मिले जो अपने बुद्धि और बल के लिए समस्त संसार में जाने जाते हैं तो फिर बात ही क्या हैं.
श्री हनुमान एक ऐसे स्वामी भक्त थे जो अपने स्वामी यानि भगवान राम की कही हर बात, हर आदेश को पूरा करने में सफल होते थे. चाहे भगवान् राम की चुडामणि, रावण की कैद में फंसी माता सीता तक पहुचाने का कार्य हो या फिर लक्ष्मण जी के लिए दुर्लब जड़ी-बूटी लाने का कार्य, हनुमान जी ने हर कार्य को सफलता से पूरा किया हैं.
आज हम श्री हनुमान के व्यक्तिव से जुड़े ऐसे ही गुणों की बात करेंगे जो हमें हमारे जीवन में सफलता दिला सके.
श्री हनुमान के जीवन चरित्र से जुड़े सुंदरकाण्ड में भी स्वयं हनुमान जी इस बात को कहते हैं.
जीवन में कोई भी कार्य करने से पहले इन तीन बात का ध्यान रखने पर आप को अपने कार्य में सफलता अवश्य मिलेंगी. जब कोई कार्य आरम्भ करे तो अपने भगवान का नाम ज़रूर ले, हमेशा अपने बुजर्गों का सम्मान करे और तीसरी और सबसे ज़रूरी बात ये कि किसी भी कार्य की शुरआत मुस्कुरा कर करे.
हनुमान जी के अनुसार इन बातों के अलावा ये चार गुण भी हमें सफलता दिलाते हैं.
सक्रियता-
हनुमान जी के अनुसार सफलता के लिए हमें शारिरिक रूप से सक्रिय होना बहुत ज़रूरी हैं और जब बात मन की हो तो मन का निष्क्रिय होना उससे भी ज्यादा ज़रूरी हैं. मन का निष्क्रिय होने का आशय यहाँ पर ये हैं कि अपनी इच्क्षाओं पर काबू रखना जो हमें हमारे लक्ष्य से दूर करती हैं. हमारा मन जितना शांत होगा, चित जितना स्थिर होगा हमारे जीवन में परेशानियाँ उतनी ही कम होगी.
सजगता–
इस गुण के लिए यह आवश्यक हैं कि हमें हमारे लक्ष्य के बारे में जानकारी हो. लक्ष्य के साथ हमें हमारे आस-पास के वातावरण से भी पूरी तरह जागरूक होना ज़रूरी हैं.इस बात को एक उदाहरण से समझते हैं. जब हनुमान जी लंका के लिए जा रहे थे उसी मार्ग पर मेनाक पर्वत भी पड़ता था जहाँ विलासिता की सभी चीज़े उपलब्ध थी. हनुमान जी को इस बारे में जानकरी थी इसलिए अपनी इस यात्रा के दौरान हनुमान इस पर्वत को केवल छुकर निकल आगे की यात्रा में निकल गए थे.
सक्षम होना–
जब भी बात सक्षमता की आती हैं तो ये जानना ज़रूरी हैं कि हममे उस लक्ष्य को पाने की सक्षमता हैं या नहीं. केवल शरीर से ही सक्षम होना ज़रूरी नहीं मन और बुद्धि दोनों से भी सक्षम होना ज़रूरी हैं.
सहज विनम्रता–
हनुमान जी की इस बात के लिए एक किस्सा हैं. हनुमान जी जब मेनाक पर्वत से चले थे तब उन्हें सुरसा नाम की एक राक्षसी मिली, जिसे पार करने के लिए हनुमान को सूक्ष्म रूप धारण करना पड़ा. ये हनुमान की सजह विनम्रता ही थी जो उन्होंने अपने लक्ष्य सिद्धि के लिए छोटा होना स्वीकार किया. आगे बढ़ने के लिए सहज विनम्र होना ज़रूरी हैं.
ये सारी बातें केवल उन लोगों के लिए नहीं हैं जो श्री हनुमान के उपासक हैं उनके के लिए भी हैं जो अपने जीवन में सफल होना चाहते हैं.हनुमान जी की इन बातों को एक बार अपनी दिनचर्या में अमल करें, ज़रूर बदलाव देखेंगे.