गजानन महाराज
गजानन महाराज जैसा कोई महाराज देखने को नहीं मिलेंगे.
सबसे हटके यह महाराज लोगों को भगवान पर विश्वास रखने के लिए कहते थे. पहली बार शेवगांव में महाराज जब एक व्यक्ति को दिखे, तब वे कूड़े में फेके हुए पत्ते के थाली पर बचा खाना खा रहे थे.
बाबा उस फेके अन्न का महत्व सब लोगों को बताना चाहते थे. आज भी महाराज के मंदिरों में भक्तों को मुफ्त में खाना दिया जाता है, मगर उसे फेकने की अनुमति नहीं. जितना खा सको उतना ही लेने के लिए कहा जाता है.
किसी भी मंदिर में आप जाओ तो फुल माला श्रीफल (नारियल) का चढ़ाव आम रिवाज है.
किंतु गजानन महाराज को इन सब औपचारिकता की आवश्यकता भक्तों से नहीं है.
अगर साईं बाबा विश्व प्रसिद्ध है, तो गजानन महाराज के भक्त अपने सेवा के लिए जाने जाते है. महाराज के भक्त वर्ष में एक बार १० – १५ दिन का वक़्त निकाल कर उनके जगह जगह प्रतिष्ठानों में सेवा देते है. सेवा देना मतलब वहा रह कर दूर दराज से आये लोगों को खाना परोसना, साफ़ सफाई करना इत्यादि. सेवा भाव से आये भक्तों को रहना खाना भी मुफ्त होता है.
बाबा का मंत्र गण गण गणात बोले अर्थात भगवान कण कण में है. बताया जाता है की स्वामी समर्थ जाने के बाद उनके भक्त बेहद अकेले हो गए तब गजानन महाराज ने दत्तावतार लिया.
गजानन महाराज (शेगाव, महाराष्ट्र) : प्रगट काल : इ.स. १८७८-१९१०
यह वो संत फ़क़ीर है जिन्होंने बेहद अच्छी सिख देने कि कोशिस की. उस वक़्त उनके भक्त गिने चुने होते थे. मगर आज पुरे विश्व भर से लोग इनके दर्शन करने आते है.
लेकिन उनके द्वारा दी हुयी शिक्षा का अनुकरण शायद ही कोई करता है.
ऐसी स्थिति में यह दतात्रेय के अवतार और स्वयं दत्ता कैसे प्रसन होंगे?