महिलाओं के अधिकारों के लिए सारे विश्व में अलग-अलग किस्म की मुहीम चलायी जा रही हैं लेकिन उनका असर कहीं-कहीं कभी-कभी ही नज़र आता है!
लेकिन अब बदलाव की एक लहर साफ़ नज़र आने लगी है|
वो भी एक ऐसे रूढ़िवादी देश में जहाँ इस बात की कल्पना करना भी कुछ साल पहले तक मुमकिन नहीं था!
मैं बात कर रहा हूँ इस्लामिक देशों में सबसे ख़ास और सबसे रूढ़िवादी देश, साउदी अरब की!
जी हाँ, एक ऐसा देश जहाँ औरतों को बुर्क़ा पहनना अनिवार्य है, जहाँ उनके अधिकारों पर लगाम लगाई जाती है! वहाँ हाल ही में हुए चुनावों में ना सिर्फ़ महिलाओं को चुनावों में मत देने का अधिकार मिला बल्कि उम्मीदवार बनकर चुनाव लड़ने का हक़ भी दिया गया!
बी बी सी की रिपोर्ट्स के मुताबिक़ पूरे देश में क़रीब 1,30,000 महिलाएँ वोटर सूची में शामिल थीं और मर्दों की संख्या थी क़रीब 13.5 लाख! म्युनिसिपल चुनावों की कुल मिलकर 284 सीटों के लिए 978 महिला उम्मीदवार और 5,938 पुरुष उम्मीदवार थे! आलोचकों को ही नहीं, महिलाओं को ख़ुद भी यही अंदाज़ा था कि पहले चुनाव हैं जिनमें औरतों को ऐसा हक़ दिया जा रहा है, वोट ही कर लिए तो बहुत है, जीतना-जीताना तो होता रहेगा| लेकिन सबकी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा जब एक नहीं, दो नहीं, बल्कि 19 महिलाओं ने चुनाव जीते! वोटों की गिनती अभी भी जारी है यानि कि और महिलाओं के जीतने के आसार भी अभी ज़िंदा हैं!
चुनाव के नतीजों के अनुसार सबसे पहले जिस महिला ने चुनाव जीता, उनका नाम है सलमा बिन्त हिज़ब अल-ओतैबि! ये पाक़ शहर मक्का के बाहर एक छोटे से शहर मुद्रिका में रहने वाली एक अध्यापिका हैं जिनका अब तक का जीवन बेहद कठिनाईयों से गुज़रा! लेकिन उम्मीद है कि इस नए बदलाव से उनकी ज़िन्दगी भी बेहतर होगी!
सही मायनों में देखा जाए तो ये सिर्फ़ चुनाव नहीं हैं, एक पहल है जहाँ औरतों को आदमियों के बराबर खड़े होने का हक़ दिया गया है, उन्हें बताया गया है कि उनकी भी एक आवाज़ है जिसका महत्व है! ना सिर्फ़ उन्हें अपने लिए, बल्कि दूसरी महिलाओं के लिए भी लड़ने, उनके जीवन को बेहतर बनाने की एक ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है!
आशा है कि परिवर्तन की ये पहली किरण अब चारों तरफ उजाला फैलाएगी ताकि ना सिर्फ़ महिलाएँ, बल्कि पूरे देश को महिलाओं की बुद्धिमत्ता और समझदारी की वजह से प्रगति की ओर अग्रसर किया जा सके!