कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आस्माँ नहीं मिलता
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता
निदा की हर एक शायरी,हर नज़्म और हर एक गज़ल में अलग ही बात थी. हर बड़ी छोटी बात को कितनी आसानी से लफ़्ज़ों की माला में पिरो देते थे. मुहब्बत हो या नफरत, यारों से बिछड़ने का गम हो या शहर छूटने की टीस या फिर मज़हब की दीवार हर एक बात के लिए निदा थे और उनकी शायरी थी.
कल अचानक हार्ट अटैक की वजह से निदा फ़ाज़ली की 78 वर्ष की उम्र में मृत्यु हो गयी. लेकिन जब तक उनकी शायरी और गजलें है तब तक वो जिंदा रहेंगे और हमें जिंदगी के छोटे बड़े फलसफे सिखाते रहेंगे.