प्यारा भारत देश है मेरा. हमारे जैसी संस्कृति और रिवाज, आपको पूरे विश्व में कहीं नहीं मिल सकते हैं. हिन्दू-मुस्लिम एकता को तोड़ने के लिए बेशक आप लाख प्रयास कीजिये, लेकिन आपकी कोशिशों के बावजूद, यह टूट नहीं पायगी.
आपको अगर असली हिंदुस्तान देखना हो तो देश की किसी भी दरगाह में आप जा सकते हैं. यहाँ आप जाते हैं, तो अनेकता में एकता का सजीव चित्रण आप एक पल में प्राप्त कर सकते हो. आप देख सकते हो कि यहाँ माथा टेकने वाले हिन्दू भी हैं और मुस्लिम भी. यहाँ सेवा करने वाले मुस्लिम भी हैं और हिन्दू भी.
आइये आपको भारत की कुछ ऐसी ही दरगाहों के बारे में हम आज बताते हैं. इनमें से कुछ के बारे में तो आपने सुना होगा और कुछ के बारें में आप यहाँ पढ़ सकते हो.
दरगाह अजमेर शरीफ
दरगाह अजमेर शरीफ का भारत में बड़ा महत्व है. अगर आप हिन्दुस्तानी हैं तो आपने अजमेर की इस दरगाह के बारे में तो सुना ही होगा. ख्वाजा जी के घर पर हर धर्म के लोगों का अटूट विश्वास है. यह दरगाह ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती जी की है. दरगाह शरीफ अपनी वास्तुकला की दृष्टि से भी अभूतपूर्व है. यहाँ ईरानी और हिन्दुस्तानी वास्तुकला का सुंदर मिलन दिखता है. दरगाह का निर्माण हुमायूँ के शासनकाल में हुआ था. अब क्योंकी ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती जी ईरान से आये थे, तो यहाँ दो संस्कृतियों का मिलन होना तो निश्चित ही है.
हाजी अली दरगाह
19 वीं सदी के पूर्वार्ध में बनी, मुंबई की प्रसिद्ध हाजी अली दरगाह पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. अरब सागर के बीच में स्थित यह दरगाह, जमीन से 500 गज दूर समुद्र में स्थित है. यह हिंदुओं और मुसलमानों की ही नहीं, बल्कि अन्य धर्मों के लोगों के लिए भी समान रूप से आस्था और विश्वास का केंद्र है.
बाबा कमर अली दरवेश दरगाह
हजरत कमर अली दरवेश बाबा की दरगाह पुणे-बेंगलुरु हाईवे पर स्थित शिवपुर गांव में है. लगभग 700 वर्ष पूर्व संत हजरत कमर अली को यहाँ दफनाया गया था. इनका निधन तो मात्र 18 साल की उम्र में हो गया था. आप अगर चमत्कारों पर विश्वास करते हैं तो आपको एक बार यहाँ जरुर जाना चाहिए. यहाँ दरगाह में 90 किलो का एक पत्थर रखा हुआ है, जिसे आप 11 लोग अपनी एक-एक ऊँगली का प्रयोग कर उठा सकते हैं. और यही काम अगर इस पत्थर को बाहर ले जाकर करोगे, तब यह नहीं हो पाता है. एक विशेष बात यह है कि देश की अन्य दरगाहों की तरह, यहाँ पर महिलाओं को लेकर कोई बंदिश नहीं है.
बिहार शरीफ की दरगाह
बिहार के पटना जिले में स्थित बिहार शरीफ कभी ओदांतापुरी विश्वविद्यालय का विशिष्ट स्थान था जहाँ बौद्ध धर्म की शिक्षा के लिए दूर-दूर से लोग आते थे. यहां मुगलों द्वारा बनवाया गया पीर मखदूम शाह का विश्व प्रसिद्ध मकबरा है, जो मुग़ल वास्तु कला का एक उत्कृष्ट नमूना है. इसे छोटी दरगाह भी कहते हैं. यह कब्र पीर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है. यह संरचना दुर्लभ गुणवत्ता वाली ईंटों से बनी है जिसने पिछले 600 सालों से समय, मौसम और लूटपाट की चुनौतियों का सामना किया है. इस गुंबद के अंदर संत के अलावा उसके परिवार के सदस्यों की 10 कब्रें हैं.
गुलबर्गा शरीफ दरगाह
गुलबर्गा कर्नाटक का एक मुख्य जिला है. यहाँ काफी संख्या में हिन्दू और मुस्लिम लोग आपसी भाईचारे के साथ रहते हैं. यहाँ की एकता के पीछे का एक मुख्य कारण संत सैय्यद हुसनी जी ही थे. आज गुलबर्गा में इनकी पवित्र दरगाह धार्मिक सद्भावना का सन्देश लोगों तक पंहुचा रही है.
हजरत हुसैन आली मुकाम जी की दरगाह
उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिले, नगर देवा शरीफ में स्थित है हजरत हुसैन आली मुकाम जी की दरगाह. आज भी प्रेम व एकता का संदेश देने के साथ-साथ मानवीय परेशानियों से मुक्ति का मुख्य स्थान है. लोग यहाँ आते हैं, अपनी दुआओं के साथ और बाबा उन्हें निराश भी नहीं करते. वारिस अली हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत हुसैन आली मुकाम इब्ने अली व फातमा की 26वीं पीढ़ी में हैं.
हजरत निज़ामुद्दीन औलिया जी की दरगाह
दक्षिणी दिल्ली में स्थित हजरत निज़ामुद्दीन औलिया जी का मकबरा, सूफी काल की एक पवित्र दरगाह है. हजरत निज़ामुद्दीन चिश्ती घराने के चौथे संत थे. एक वाक्या है कि 1303 में इनके कहने पर ही मुगल सेना ने हमला रोका था. हजरत जी ने जब अपने प्राण त्यागे, तभी इनकी दरगाह का निर्माण शुरू किया गया था, जो 1562 तक चला. आप यदि यहाँ जाते हैं तो भारत के विभिन्न रूपों का दर्शन आप कर सकते हैं. इस दरगाह के प्रति आदर मुस्लिमों से ज्यादा, हिन्दू लोगों में है.
हमारे धर्मों में कहा गया है कि हमें कभी भी संतों की शरण और सत्संग में जाने से घबराना नहीं चाहिए. संत किसी की धर्म और जात का हो सकता है. संत का धर्म और जात नहीं देखी जाती.
हमारे भारत में आज भी प्रमुख दरगाहें ऐसी ही जगह बनी हुई हैं, जहाँ हार धर्म के लोग बिना किसी झिझक के माथा टेकते हैं और जो भी यहाँ आता है, उसे बिना किसी भेदभाव के लाभ भी मिलता है.
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