नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया गाँधी और राहुल गांधी को कोर्ट में हाज़िर होने का आदेश मिला है.
अगर खबरों पर आपकी नज़र हो तो आप जानते होंगे कि इस केस के चक्कर में पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस दोनों सदनों में हंगामा मचा कर संसद की कार्यवाही को ठप कर रही है.
लेकिन क्या आप जानते है कि आखिर क्या चक्कर है नेशनल हेराल्ड का?
आगे की स्लाइड्स में देखिये नेशनल हेरल्ड का इतिहास और वो केस जिसने सोनिया और राहुल गाँधी की नींदें उड़ा दी है.
नेशनल हेराल्ड की स्थापना जवाहर लाल नेहरु ने 1938 में की थी.
उस समय से ही ये अखबार तरह तरह की समस्याओं से जूझता रहा है.
कहने को तो ये कांग्रेस का मुखपत्र जैसा था लेकिन अलग अलग लोगों के निवेश और कार्य करने की कोई सटीक और निश्चित प्रणाली ना होने के कारण ये एक हाथी पालने जैसा हो गया था.
आज इसके हालत ऐसे है कि आम लोग क्या कांग्रेस के लोग भी इस अख़बार को गंभीरता से नहीं लेते.
स्थापना के बाद से ही नेशनल हेराल्ड मुश्किलों में रहा है.
जवाहर लाल नेहरु ने कई बार इस अखबार के लिए बेनामी सम्पादकीय लिखे.
अमेरिका ने जब परमाणु परिक्षण किया था तो उसकी प्रतिक्रिया भी नेहरु ने इसी अखबार में दी थी.
ये आज की बात नहीं है इस अखबार पर कांग्रेस के गैरकानूनी ढंग से कमाये धन को कानूनी रूप देने के आरोप बहुत पहले से लगाये जाते रहे है.
इस अखबार का पतन राजीव गांधी की हत्या के बाद और ज्यादा होने लगा.
1998 में नेशनल हेराल्ड प्रकाशन की संपत्तियों की नीलामी होने लगी. आने वाले समय में ये अखबार मज़ाक बन गया. लोगों का कहना था कि इस अखबार की उतनी प्रतियाँ भी नहीं बिकती जितने लोग इस अखबार के दफ्तर में काम करते है.
इस अखबार की मुश्किल से 5000 प्रतियाँ छपती थी वो भी अधिकतर कांग्रेस ऑफिस, सरकारी कार्यालयों में मुफ्त भेजी जाती थी.
2008 में इस अखबार का प्रकाशन बंद हो गया.
सुब्रमण्यम स्वामी ने नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया गांधी और राहुल गांधी को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है.
सोनिया और राहुल गाँधी पर पार्टी की कर मुक्त आय को अलग अलग वित्तीय संस्थानों में लगाने का आरोप लगा है. निचली अदालत ने आरोप स्वीकार करते हुए उनको अदालत में आने का निर्देश दिया है.
सोनिया और राहुल गांधी के इस मामले में कोर्ट द्वारा हाज़िर होने के निर्देश के बाद से ही कांग्रेस लगातार हंगामा कर संसद की कार्यवाही अटका रही है. कांग्रेस के अनुसार ये बीजेपी का प्रतिशोध लेने का तरीका है. वहीँ बीजेपी का कहना है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है और इस मामले में सरकार का हाथ नहीं है.
ताज़ा जानकारी के हिसाब से नेशनल हेराल्ड केस में मुंबई की जमीन के मामले में भी कांग्रेस फंस गयी है.
नेशनल हेराल्ड के दफ्तर के लिए तत्कालीन कांग्रेस नेता अंतुले ने एक बड़ी जमीन दी थी. अशो चौहान सरकार ने करीब 3 करोड़ का टैक्स भी माफ़ किया था. आज इस ज़मीन पर अखबार का दफ्तर नहीं बल्कि व्यावसायिक प्रतिष्ठान है. दफ्तर बनाने के लिए मुंबई लोकल की लाइन भी नहीं लगने दी गयी थी.
तो ये था नेशनल हेराल्ड का इतिहास और मामले की सच्चाई. अब देखना ये है कि क्या इस मामले की वजह से सोनिया गाँधी और राहुल गांधी सलाखों के पीछे जाते है या नहीं?
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