कहा जाता है कि संस्कृत एक सनातन भाषा है.
इस भाषा का कोई जन्म नहीं हुआ था ना ही इस भाषा कि कोई मृत्यु होगी. सनातन धर्म यानी हिंदुत्व की रीढ़ है यह भाषा. लेकिन आज कल के फैले हुए पाश्चात्य के कारण हम भारतवासी संस्कृत से एक तरह से अलग-थलग हो गए हैं. देव वाणी बोली जानेवाली संस्कृत इस आज की हिंदी और अंग्रेज़ी की भीड़-भाड में कहीं खो गयी है.
कम-से-कम मेरा मानना तो यही था. संस्कृत का अस्तित्व सिर्फ धार्मिक किताबों और ग्रंथों तक ही सीमित है. लेकिन कर्नाटक में शिवमोग्गा शहर के करीब स्थित मत्तुर गाँव ने मेरी यह सोच कुछ हद तक बदल कर रख दी.
मत्तुर गाँव में कुल 537 परिवार रहते हैं जो 2864 की जनसँख्या को योगदान देते हैं. 2011 की जनगणना के हिसाब से मत्तुर गाँव में 1454 आदमी और 1410 औरतें रहती हैं. और यकीन मानिए, पूरी जनसंख्या रोज़मर्रा के संवाद में संस्कृत का उपयोग करती है. करीब-करीब 600 साल पहले संकेथी ब्राम्हण समुदाय के लोग केरल से आकर इस गाँव में बस गए और तब से लेकर आज तक मत्तुर गाँव को अपना घर मानकर रहते हैं.
10 साल के पूर्ण हो जाने पर यहाँ के बच्चों को वेदों का शिक्षण दिया जाता है और यहाँ के सभी बच्चे संस्कृत धड़ल्ले से बोलते हैं.
यह कहना सही होगा कि पौराणिक भारत को या कम से कम पौराणिक भारत कि कुछ चीज़ों को इस जगह ने बहुत ही महफूज़ तरीके से संजोए रखा है.
मत्तुर गाँव पाठशाला के छात्र साल दर साल अच्छे नंबर प्राप्त कर शिक्षण क्षेत्र में इस गाँव का पद कर्नाटक के बाकी गाँवों से ऊंचा बरकरार रखने में कामयाब रहे हैं. इस गाँव के रहवासी नरेन्द्र मोदी के सी.बी.एस.ई बोर्ड से जर्मन भाषा हटाकर संस्कृत भाषा लागू करने के फैसले से काफी खुश हैं.
मत्तुर गाँव में बड़ों और जवान लोगों की सोच में काफी अंतर दिखाई देता है. इस गाँव के बड़े बूढ़े सख्त प्रवर्तन के समर्थक हैं. आज भी दूसरे मज़हब का कोई अगर इस गाँव में आता है तो उसका स्वागत तिरछी निगाहों से ही होता है. सारे रस्मों-रिवाजों को निभाते हुए यहाँ शादियाँ पूरे 7 दिनों तक चलती हैं.
मत्तुर गाँव का अपराध दर देश में मौजूद ज्यादातर गाँवों से कम है. यहाँ ज़मीन को लेकर मार-काट नहीं होती क्योंकि यहाँ रहने वाले सभी लोग एक ही विस्तृत परिवार के सदस्य हैं.
मत्तुर गाँव के थोड़ी दूर स्थित होसाहल्ली गाँव में भी संस्कृत भाषा बोली जाती है. होसहल्ली गाँव तुंगा नदी के करीब स्थित है. यहाँ के लोग गोमाख कला का समर्थन करते हैं. गोमाख एक अलग किस्म की कहानी कहने की शैली है जिसे होसहल्ली गाँव वालों ने जीवित रखा है.
भारत को मत्तुर और होसाहल्ली जैसी और जगहों की ज़रुरत है. संस्कृत दुनिया की सबसे महान और पुरानी भाषाओं में से एक है और इस भाषा की पहचान सिर्फ धार्मिक किताबों और ग्रंथों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए. दुनिया में बोली जाने वाली कई भाषाएँ संस्कृत भाषा से ही जन्मी हैं और मेरा कहना है की संस्कृत एक भाषा ही नहीं बल्कि एक जीवन शैली है. इसे सम्मान मिलना अनिवार्य है.