जी.रमेश बाबु अरबपति होने के बावजूद खुद अपने हाथों से ग्राहकों को देते है हेरस्टाइल.
आम तौर पर किसी के पास जरुरत से अधिक पैसे आने लगे तो, वो इंसान सातवे आसमान पर रहता है.
यहा तो बात हो रही अरबपती की. सोचिये अगर कोई करोड़पती भी रहेगा तो भी वो अपने हाथों से पानी तक नहीं लेगा. मगर यहा तो रमेश बाबु बिलेनियर होकर भी ग्राहकों को सुंदर हेरस्टाइल रोजाना देते है.
कौन है रमेश बाबु ?
जी. रमेश बाबु एक अरबपति है जो VIP कार रेंट पर देने का व्यापार करते है.
दज़्ज़लिंग, रोल्स रॉयल्स , मेर्कस , BMWs, Volkswagens, and इंनोवास जैसे बड़ी लक्सरी २५६ कार है. इन्हें चलाने के लिए १२० से अधिक कार चालक रमेश टूर्स में काम करते है.
अनंतपुर गांव के रमेश बाबु बंगलोर में अपना कारोबार चलाते है.
रमेश पर्यटन और यात्रा प्राइवेट लिमिटेड की सेवा देश विदेश के उद्योगपती, सुपर स्टार, राजनेता और बड़ी हस्तियां सेवा लेते है.
क्यों रमेश बाबु नाई का काम करते है?
रमेश बाबु के परदादा नाई थे. १९२८ से वो दूकान में काम करते. उनके मौत के बाद उनके पिता भी इसी व्यावसाय में कार्यरत रहे.
७ साल की उर्म में उनके पिता का देहांत हुवा. परिवार का सारा भार उनपर आने के कारन, उन्हेंने नाई काम आगे करना पडा.
गरीबी और भूखमरी इतनी थी की रमेश बाबु की माँ सिलाई का काम करने जाती.
अपने ही दूकान में चाचा के हाथों के नीचे रमेश नाई का काम करते थे. रोजाना ५ रूपए रमेश बाबु को मजदूरी मिलती थी.
लेकिन आज अरबपती होने के बावजूद रमेश बाबु बंगलौर के सेंट मार्क रोड पर स्थित अपने सलून में रोज ८ से १० ग्राहंको का हेयरकट करते है.
आम से लेकर ख़ास लोगो को हेयरकट महज ७५-१००रु शुल्क लेकर करते है.
कठिन परिश्रम और परिवार का बोझ ढोते हुए रमेश व्यवसाईक कामो में कुशल हुए.
बड़ा बनने की इच्छा उनके दिलों दिमाग पर छाई हुई थी.
अपनी परिस्थितियों को बेहतर कर परिवार को सुख समृधी देने के सपने ने उन्हें आज अरबपती बनाया.
१९९५ में ओमनी लेकर कार रेंट का व्यवसाय रमेश बाबु ने लोन लेकर शुरू किया था.
विश्व के ऐसे व्यवसायों के टॉप सूची में रमेश टूर्स का नाम आज कि तारिख में लिया जाता है.
https://www.youtube.com/watch?v=KWSheiFmVvc
Or
https://www.youtube.com/watch?v=0_LZVe3QxCs
रमेश बाबु का कहना है कि “कभी अपने भूतकाल को नहीं भूलना चाहिए, चाहे आप कितना भी दूर जाए या बड़ा बने.”
यह सही भी है. जो रोजगार या व्यवसाय आपको बुरे वक़्त से बाहर ले आया हो. उसे रमेश बाबु की तरह जिन्दा जरुर रखना चाहिए.
लेकिन सबके बसकी बात नहीं. आज की युवा पीढी को ज्यादा तर शार्टकट में आगे बढने की होड़ होती है. इस लिए वह कठिन परिश्रम पुरे दिल से नहीं कर पाते. ऐसे में शर्म और गर्व में डूबे लोग, भूतकाल को भूलकर अपना कौशल और पारंपरिक व्यावसाय जिन्दा रखना नहीं चाहते. यह केवल रमेश बाबु जैसे लोग ही कर सकते है.
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