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क्या है कहानी याकूब मेमन की

पैसा कहाँ से आता है, कहाँ जाता है. किस धंधे में कितना लगा है, किस धंधे में कितना लगाना है ये सब याकूब का ही काम था.

अपने भाई के गैरकानूनी धंधों से याकूब ने भी बहुत पैसा बनाया. गिरफ्तारी के समय याकूब के अल हुसैनी बिल्डिंग में याकूब के नाम पर 6 फ्लैट्स थे और मुंबई के कई इलाकों में जायदाद. जब उन फ्लैट्स की छानबीन की गयी तो राकेश मारिया को एक स्कूटर की चाबी मिली और फिर मिला दक्षिण मुम्बई के कथा बाज़ार में पार्क किया गया विस्फोटकों से भरा स्कूटर.

इतने सुबूत काफी थे मेमन परिवार को मुंबई धमाकों से जोड़ने के लिए.

आगे की जांच में परत दर परत खुलती गयी और टाइगर मेमन के साथ याकूब मेमन का नाम भी जुड़ गया धमाकों के अभियुक्त में. जहाँ टाइगर एक गर्म दिमाग इंसान था वहीँ याकूब पूरे परिवार में सबसे शांत था.

जांच के दौरान पता चला कि याकूब ने ही इस पूरी साजिश के लिए आने वाले पैसे का हिसाब रखा था और पैसों का प्रबंधन किया था.

याकूब के साथ ही सह अभियुक्त मूलचंद शाह ने भी पैसे के लेन देन में मदद की.

जैसे ही मुंबई पुलिस को सुबूत मिले बाकि अभियुक्तों के साथ याकूब के पीछे भी पुलिस पड़ गयी. ब्लास्ट के दो दिन बाद पूरा मेमन परिवार करांची चला गया.

कुछ दिन बाद परिवार की कुछ महिलाएं वापस भारत आ गयी और उन्ही के साथ याकूब ने भी भारत आने का फैसला किया. याकूब इस माहौल में भी भारत आकर इस मामले से अपना नाम हटवाना चाहता था क्योंकि वो पूरी जिंदगी भगोड़े की जिंदगी नहीं जीना चाहता था.

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मेमन के मुताबिक 1994 में उसे काठमांडू से गिरफ्तार किया गया था वहीँ CBI  का कहना है कि मेमन को दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया गया था.

गिरफ्तारी के बाद याकूब पर विशेष टाडा अदालत में मुकदमा चला और याकूब पर साजिश रचने, साजिश के लिए धन उपलब्ध कराने और गैरकानूनी रूप से विध्वंसक हथियार रखने का केस दर्ज किया गया.

2007 में इस मुक़दमे का फैसला आया जिसमें याकूब मेमन को सजा ए मौत दी गयी.

इस फैसले के विरुद्ध याकूब के वकीलों द्वारा उच्चतम न्यायलय में भी अपील की गयी पर सुप्रीम कोर्ट ने भी टाडा कोर्ट के फैसले को सही ठहराया और याकूब की फांसी की सज़ा को बरकरार रखा.

2013 में उच्चतम न्यायलय ने याकूब को फांसी की सजा सुना दी, याकूब और उसके परिवार वालों ने राष्टपति से माफ़ी की अपील भी की. राष्ट्रपति ने भी ये कह कर अपील खारिज़ कर दी कि मुंबई धमाके अक्षम्य अपराध है और उसके अभियुक्त को माफ़ करना सभव नही है.

आगामी 30 जुलाई को याकूब को फांसी होने वाली है. कुछ लोग इसे गलत मान रहे है. उनके अनुसार याकूब को उम्रकैद मिलनी चाहिए थी. वही इस बम कांड में मारे गए लोगों के परिवार वाले खुश है कि  20 साल बाद ही सही पर उनके गुनाहगार को सजा तो मिलेगी.

याकूब भी मौत से ज्यादा शायद इस बात से डर रहा होगा के क्या मुहं दिखायेगा वो अपने ख़ुदा को और कैसे सामना करेगा उन बेक़सूर रूहों का जिन्हें बेवक्त मिली मौत उसकी बदौलत.

अब बस इंतज़ार है उस दिन का जब मुंबई धमाकों के मुख्य अभियुक्त दाऊद, शकील और टाइगर को भी उनके किये की सजा मिले.

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