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अनशन गाँधी जी की देन हैं यह समझना आपकी भूल है ! एक बालक यमदूत के द्वार पर तीन दिन तक आमरण अनशन पर बैठा था

आप अगर सोचते हैं कि अनशन और सत्याग्रह यह सब गाँधी जी की देन हैं तो आपका यह सोचना गलत है.

अगर आप कठोपनिषद ग्रन्थ का अध्ययन करते हैं तो वहां आपको एक बालक नचिकेता की कहानी पढ़ने को मिल जाएगी जो पिता की आज्ञा के लिए यमदूत के द्वार पर अनशन पर बैठ गये थे.

इस अनशन के आगे कहते हैं कि यमदूत को भी झुकना पड़ा था.

तो आइये पढ़ते हैं बालक नचिकेता की कहानी और उसके सत्याग्रह की पूरी दास्तान-

पिता ने जब यज्ञ का आयोजन कराया

नचिकेता के पिता एक महर्षि थे जिनका नाम वाजश्रवा था. वे महान विद्वान और चरित्रवान थे. एक बार महर्षि वाजश्रवा ने ‘विश्वजीत’ यज्ञ किया और उन्होंने प्रतिज्ञा की कि इस यज्ञ में मैं अपनी सारी संपत्ति दान कर दूंगा.

यज्ञ की समाप्ति पर महर्षि ने अपनी सारी गायों को यज्ञ करने वालो को दक्षिणा में दे दिया. लेकिन तब बालक नचिकेता के मन में गायों को दान में देना अच्छा नहीं लगा क्योंकि वे गायें बूढी और दुर्बल थी. ऐसी गायों को दान में देने से कोई लाभ नहीं होगा. उसने सोचा पिताजी जरुर भूल कर रहे है. पुत्र होने के नाते मुझे इस भूल के बारे में बताना चाहिए.

नचिकेता ने कहा, ” मेरे विचार से दान में वही वास्तु देनी चाहिए जो उपयोगी हो तथा दूसरो के काम आ सके फिर मैं तो आपका पुत्र हूँ बताइए आप मुझे किसे देंगे ?

महर्षि ने नचिकेता की बात का कोई उत्तर नहीं दिया परन्तु नचिकेता ने बार-बार वही प्रश्न दोहराया. महर्षि को क्रोध आ गया. वे गुस्से में बोले, ” जा, मैं तुझे यमराज को देता हूँ.

जब नचिकेता यमलोक पंहुच गया

जब नचिकेता यमलोक पहुंचा तो दूतों ने उसे अन्दर नहीं जाने दिए क्योकि उसका अभी समय नहीं हुआ था तो नचिकेता वहीँ द्वार पर भूखे-प्यासे बैठ गये थे. तीन दिन बाद इस बाद का यमदूत को पता चलता है तो वह बालक को अन्दर बुलाते हैं.

चौथे दिन जब यमराज ने बालक नचिकेता को देखा तो उन्होंने उसका परिचय पूछा. नचिकेता ने निर्भीक होकर विनम्रता से अपना परिचय दिया और यह भी बताया  कि वह अपने पिताजी की आज्ञा से वहां आया है.

यमराज ने सोचा कि यह पितृ भक्त बालक मेरे यहाँ अतिथि है. मैंने और मेरे दूतों ने घर आये हुए इस अतिथि का सत्कार नहीं किया. उन्होंने नचिकेता से कहा, ” हे ऋषिकुमार, तुम मेरे द्वार पर तीन दिनों तक भूखे – प्यासे पड़े रहे, मुझसे तीन वर मांग लो.

तब इन्होनें पहला वर पिता का गुस्सा शांत हो ऐसा माँगा, दूसरा वरदान स्वर्ग कैसे मिलता है यह ज्ञान लिया और तीसरा वरदान मृत्यु क्यों होती है इस पर ज्ञान स्वीकार किया.

आज यही ज्ञान हम सब के काम आ रहा है जो बालक नचिकेता ने यमराज से लिया था.

आगे चलकर यह बालक एक बड़ा ऋषि बना जिनको हम नचिकेता के नाम से ही जानते हैं.

Chandra Kant S

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Chandra Kant S

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