Categories: विशेष

एक किस्सा आईने का, जो कोई न समझ पाया!

हम सब के लिए पैसों की कितनी एहमियत हैं, यह हम सब को अच्छी तरह से ज्ञात हैं.

इसलिए हर दिन सुबह से लेकर रात तक पूरी ज़िन्दगी हम पैसे कमाने में निकाल देते हैं, लेकिन इन सब से अलग ताजुब की बात यह हैं कि जिन पैसों के लिए हमने अपनी पूरी ज़िन्दगी खपा दी उसे अपनी मौत के बाद हम यही छोड़ कर चले जाते हैं.

अगर इन बातों को सकारात्मक तरीके से लिया जाये तो यह तकलीफदेह नहीं लगती हैं, लेकिन यदि इसी बात को नकारात्मक तौर पर लिया जाये तो हमारा पूरा का पूरा जीवन व्यर्थ लगता हैं.

हम सुबह क्यों उठे?

क्यों ऑफिस पहुचने की हड़बड़ी में अपना नाश्ता छोड़ कर भागते है?

क्यों 2 मिनिट की देरी के डर से अपनी जान जोखिम में डालकर ट्रेन और बस पकड़ते है?

क्यों अपने ज़मीर को तांक में रखकर वो सारे काम करे जिसके लिए हम तैयार ही नहीं हैं?

सिर्फ इसलिए कि ज़िन्दगी काटने के हम सभी के लिए कुछ पैसे ज़रूरी होती हैं, मगर ये पैसे तो यही रह जाने हैं.

ऐसी बात से जुड़ी एक कहानी आज हम आप को बताते हैं – एक किस्सा आईने का, जो कोई न समझ पाया!

किसी गाँव में एक साहूकार होता था, जिसे धन सम्पति जोड़ने में बहुत आनंद मिलता था और वह इस काम में काफी योग्य भी था. लेकिन कुछ ही दिन में उसे अपनी योग्यता का अहंकार भी हो गया था. अपने धन सम्पति और गुणों के से हुए घमंड के कारण जब भी कोई ज़रूरतमंद व्यक्ति उसके घर कुछ लेने या भीख मांगने आता तो वह उसे भला बुरा कहकर भगा दिया करता था.

एक रोज़ उसने अपने घर किसी महात्मा को भोजन करने के लिए निमंत्रण दिया और महात्मा के भोजन पूर्ण होने के बाद  लौटते वक़्त एक दर्पण भेंट किया और कहा कि आप को जब भी दुनिया का सबसे मुर्ख व्यक्ति मिले तो आप उसे यह दर्पण भेंट कर दीजियेगा. साहूकार की बात सुनकर महात्मा दर्पण लेकर वहां से चले गए. लेकिन बहुत समय जब घूमते हुए वहीं महात्मा वापस उस साहूकार के घर पहुचे तो देखा कि उस साहूकार की तबियत बहुत ख़राब चल रही हैं और वह मृत्यु सैय्या पर लेटा हुआ हैं.

महात्मा को देख साहूकार टूट गया और कहने लगा कि महाराज कोई ऐसी विद्या बताये जिससे मेरे प्राण बच जायें. साहूकार की बात सुनकर महात्मा ने जवाब दिया कि मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ. ये बात कह कर उन्होंने अपने झोले से एक आईना निकाल कर उसे साहूकार को दिया.

उस दर्पण को देखकर साहूकार को याद आया कि यह दर्पण तो उसने ही महात्मा को भेंट स्वरुप दिया था यह कहकर कि जब दुनिया में आपको कोई मुर्ख व्यक्ति मिले तो उसे दे दीजियेगा. इसके बाद महात्मा ने कहा कि मैंने दुनिया में तुमसे ज्यादा मुर्ख व्यक्ति नहीं देखा इसलिए तुम्हे ही यह दर्पण दे रहा हूँ.

तुमने अपनी पूरी ज़िंदगी धन कमाने में निकाल दी लेकिन आज वही धन तुम्हारे प्राण बचाने में असमर्थ हैं.

महात्मा की इन बातों को सुनकर साहूकार को समझ आ गया कि उससे कहा भूल हुई हैं.

वैसे यह किस्सा हम सब के साथ भी होता हैं कि हम अपना पूरा जीवन एक ऐसी चीज़ के लिए निकाल देते हैं जिसका महत्त्व वस्तु के लेनदेन से अधिक कुछ नहीं हैं.

Sagar Shri Gupta

Share
Published by
Sagar Shri Gupta

Recent Posts

इंडियन प्रीमियर लीग 2023 में आरसीबी के जीतने की संभावनाएं

इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) दुनिया में सबसे लोकप्रिय टी20 क्रिकेट लीग में से एक है,…

2 months ago

छोटी सोच व पैरो की मोच कभी आगे बढ़ने नही देती।

दुनिया मे सबसे ताकतवर चीज है हमारी सोच ! हम अपनी लाइफ में जैसा सोचते…

3 years ago

Solar Eclipse- Surya Grahan 2020, सूर्य ग्रहण 2020- Youngisthan

सूर्य ग्रहण 2020- सूर्य ग्रहण कब है, सूर्य ग्रहण कब लगेगा, आज सूर्य ग्रहण कितने…

3 years ago

कोरोना के लॉक डाउन में क्या है शराबियों का हाल?

कोरोना महामारी के कारण देश के देश बर्बाद हो रही हैं, इंडस्ट्रीज ठप पड़ी हुई…

3 years ago

क्या कोरोना की वजह से घट जाएगी आपकी सैलरी

दुनियाभर के 200 देश आज कोरोना संकट से जूंझ रहे हैं, इस बिमारी का असर…

3 years ago

संजय गांधी की मौत के पीछे की सच्चाई जानकर पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक जाएगी आपकी…

वैसे तो गांधी परिवार पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है और उस परिवार के हर सदस्य…

3 years ago