हमारे देश में महिलाओं के लिए दो बातें बहुत अधिक सुनी जाती हैं.
इनमें से एक बात में महिला को माँ का नाम दिया है जो ममता का केंद्र मानी जाती है. तो वहीँ दूसरी तरफ महिला को शक्ति का नाम दिया है जो अपनी शान के लिए दुष्टों का वध करती हैं.
तो कुछ ऐसी ही एक कहानी हम आपको सुनाने वाले हैं. यह कहानी है रानी दुर्गावती की जो गोंडवाना की रानी रही थी और पति की मृत्यु के बाद इन्होनें अपने राज्य का शासन कई सालों तक सफलता पूर्वक किया था.
रानी दुर्गावती को भारतीय इतिहास की के महान रानी बताया जाता है.
कहा जाता है कि एक बार अकबर की नियत में रानी को लेकर खोट आ गया था और वह रानी को पाना चाहता था लेकिन रानी ने अकबर की शर्त का विरोध किया. इतिहास आगे बताता है कि रानी के राज्य पर अकबर ने बदला लेने के आक्रमण कर दिया. लेकिन एक भारतीय रानी इतनी आसानी से हर कहाँ मानने वाली थी तो रानी ने अकबर को उसकी औकात याद दिला दी थी.
क्या हुआ जब अकबर ने किया आक्रमण
थर-थर दुश्मन कांपे,
पग-पग भागे अत्याचार,
नरमुण्डों की झडी लगाई,
लाशें बिछाई कई हजार,
जब विपदा घिर आई चहुंओर,
सीने मे खंजर लिया उतार…
यह एक कविता रानी की शोर्य गाथा को बताने के लिए काफी है. इतिहास की पुस्तकें कहती हैं कि अकबर की नजर तब रानी पर थी. रानी के ही कुछ दुश्मनों ने रानी को लेकर अकबर के कान भर दिए थे. विवाद की शुरुआत तब होती है जब अकबर युद्ध का बहाना खोजते हुए एक सफेद हाथी रानी से मांगता है. लेकिन रानी यह मांग ठुकरा देती है.
इस बात से नाराज होकर अकबर आसफ़ ख़ाँ के नेतृत्व में गोंडवाना पर हमला करता है. इतिहास बताता अहि कि पहली बार अकबर की सेना हार जाती है. पर अगली बार उसने दोगुनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला जाता है. दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे उन्होंने जबलपुर के पास मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में होकर अपनी सेना का नेतृत्व किया.
इस युद्ध में 3,000 मुग़ल सैनिक मारे गये लेकिन रानी की भी अपार क्षति हुई.
अगले दिन 24 जून, 1564 को मुग़ल सेना ने फिर हमला बोला. अन्य दिनों की तुलना में आज रानी के सेना बहुत थकी हुई थी लेकिन यहाँ पर तय हुआ कि मौत आती है तो आने दी जाए लेकिन अकबर से हर नहीं मानी जाएगी. रानी ने माँ का धर्म निभाते हुए अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया.
कुछ समय बाद रानी कुछ तीरों से घायल हो जाती है. रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ. अतः रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं.
इतिहास आगे बताता है कि रानी ने इस राज्य पर 15 साल तक सफलता पूर्वक राज किया था. रानी की मौत के बाद यह राज्य भी पूरी तरह से कलह और दुखों का घर बन गया था. लेकिन अकबर ने जब यह पूरी कहानी सुनी तो उसको यकीन नहीं हुआ कि कोई महिला भी इतनी बहादुरी से लड़ सकती है.
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