उर्दू के मशहूर शायर गालिब जिन्हें अमर कहा जा सकता है.
क्योंकि जिस्मानी तौर पर आज ये इस दुनिया में नहीं है, लेकिन अल्फ़ाज़ो को कौन मार सकता है भला! ये तो कभी कविता तो कभी शायरी के रुप में हमेशा के लिए जिंदा रहते है.
सदियां बीत जाती है पर पीढ़ी दर पीढ़ी ये परंपरा की तरह आगे बढ़ती रहती हैं.
आईए देखते है कि गालिब के साथ कई और लेखक हैं जिन्हे कई वजहों ने लिखने के लिए मजबूर किया.
गालिब–
गालिब उर्दू और फ़ारसी भाषा के महान शायर थे. कहा जाता हैं कि गालिब की शायरियां उनके मरने के काफी सालों बाद मशहूर हुई. गालिब की परवरिश काफी गरीब परिवार में हुई. बचपन में ही उनके माता-पिता की मौत हो गई थी. इस दुख की झलक उनकी रचनाओं में भी देखने को मिलती हैं. गालिब की भाषा पर अच्छी खासी पकड़ थी. जिस जगह पर गालिब रहता थे,वो उस जमाने में फ़ारसी भाषा का शिक्षण केंद्र थी.
हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए बयां और गालिब
मासूम मोहब्बत का बस इतना फ़साना है
कागज़ की कश्ती है बारिश का ज़माना है |
निदा फ़ाजली-
निदा फ़ाजली भी एक मशहूर शायर हैं, उर्दू के मशहूर शायर जिन दिनों पढ़ाई कर रहे थे.
जब वह पढ़ते थे तो उनके सामने की पंक्ति में एक लड़की बैठा करती थी जिससे वो एक अनजाना, अनबोला सा रिश्ता अनुभव करने लगे थे. लेकिन एक दिन कॉलेज के बोर्ड पर एक नोटिस दिखा “कुमारी टंडन का एक्सीडेण्ट हुआ और उनका देहान्त हो गया है”.
निदा बहुत दु:खी हुए और उन्होंने पाया कि उनका अभी तक का लिखा हुआ कुछ भी उनके इस दर्द को बयां नहीं कर पा रहा है. एक दिन सुबह वह एक मंदिर के पास से गुजरे जहाँ पर उन्होंने किसी को सूरदास का भजन मधुबन तुम क्यों रहत हरे बिरह बियोग स्याम सुंदर ठाढ़े क्यों न जरे गाते सुना| जिसमें कृष्ण के मथुरा से द्वारका चले जाने पर उनके वियोग में डूबी राधा और गोपियाँ फुलवारी से पूछ रही होती हैं.
ऐ फुलवारी, तुम हरी क्यों बनी हुई हो? कृष्ण के वियोग में तुम खड़े-खड़े क्यों नहीं जल गईं? वह सुन कर निदा को लिखने की प्रेरणा मिली.
निदा की एक रचना–
वो शोख शोख नज़र सांवली सी एक लड़की
जो रोज़ मेरी गली से गुज़र के जाती है
सुना है वो किसी लड़के से प्यार करती है
बहार हो के, तलाश-ए-बहार करती है
न कोई मेल न कोई लगाव है लेकिन न जाने क्यूँ
बस उसी वक़्त जब वो आती है
कुछ इंतिज़ार की आदत सी हो गई है
मुझे एक अजनबी की ज़रूरत हो गई है मुझे
मेरे बरांडे के आगे यह फूस का छप्पर
गली के मोड पे खडा हुआ सा
एक पत्थर वो एक झुकती हुई बदनुमा सी नीम की शाख
और उस पे जंगली कबूतर के घोंसले का निशाँ
यह सारी चीजें कि जैसे मुझी में शामिल हैं
मेरे दुखों में मेरी हर खुशी में शामिल हैं
मैं चाहता हूँ कि वो भी यूं ही गुज़रती रहे
अदा-ओ-नाज़ से लड़के को प्यार करती रहे
निदा फ़ाजली के कुछ मशहूर गीत-
1. होश वालों को खबर क्या, बेखुदी क्या चीज है (फ़िल्म सरफ़रोश)
2. कभी किसी को मुक़म्मल जहाँ नहीं मिलता (फ़िल्म आहिस्ता-आहिस्ता)
3. तू इस तरह से मेरी ज़िंदग़ी में शामिल है (फ़िल्म आहिस्ता-आहिस्ता)
4. चुप तुम रहो, चुप हम रहें (फ़िल्म इस रात की सुबह नहीं)
साहिर लुधयानवी–
ये एक ऐसे शायर थे जो खुद के बजाएं दूसरों पर ध्यान देते थे.
वे एक नास्तिक थे. उनको जीवन में दो बार प्रेम में असफलता मिली. पहला कॉलेज के दिनों में अमृता प्रीतम के साथ जब अमृता के घरवालों ने उनकी शादी न करने का फैसला ये सोचकर लिया कि साहिर एक तो दूसरे धर्म से ताल्लुक रखते हैं और वो ग़रीब थे और दूसरी सुधा मल्होत्रा से के प्रेम में. सारी उम्र अविवाहित रहे और उनसठ वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया.
उनके जीवन की कटुता उनके लिखे शेरों में झलकती है.अपनी बेबसी को उन्होंने अपनी इस रचना में कुछ इस तरह बयां किया हैं.
ज़िन्दगी सिर्फ मोहब्बत ही नहीं कुछ और भी है
भूख और प्यास की मारी इस दुनिया में
इश्क़ ही एक हक़ीकत नहीं कुछ और भी है.
साहिर के कुछ मशहूर गीत-
तो देखा आपने कोई मुफ़लिसी से था परेशान, तो कोई प्यार में खाया था चोट, तो कोई गरीबी से था परेशान.
कभी प्यार तो कभी इसमें मिली जुदाई ने रुमानी शायरों को लिखने के लिए प्रेरित किया.
इनकी रचनाएं नई सदी के शायरों के लिए भी मिसाल हैं.
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