मुस्लिम समाज में एक आदमी को एक से ज़्यादा शादियाँ – चार शादियाँ करने की इजाज़त है|
इसका उद्देश्य सिर्फ़ यही था कि लड़ाई में मारे गये जवानों की बेवाओं की ज़िंदगी आसान करने के लिए उनकी दोबारा शादी करा दी जाए|
इस तरह एक ही आदमी चार औरतों की ज़िम्मेदारी उठा उनका जीवन आसान बना सकता है!
लेकिन समय के अनुसार इसका ग़लत उपयोग भी होने लगा जैसा कि हर धर्म की लिखी किताब की बातों का होता है| बिल्कुल इसी तरह शीया इस्लाम में भी शादी को लेकर एक बहुत ही ख़ास बात कही गयी है|
उसे कहते हैं निकाह मुताह!
यह एक तरह की अस्थाई शादी है जिस में पहले से यह तय होता है कि यह शादी कितने दिन या महीने चलेगी और इसे ख़त्म करने के लिए तलाक़ की ज़रूरत भी नही होती! जब इसका पहले से तय किया हुआ समय समाप्त हो जाता है, यह शादी अपने आप ही ख़त्म हो जाती है! निकाह मुताह के लिए आदमी को औरत को दहेज भी देना पड़ता है!
निकाह और मुताह में कुछ ख़ास फ़र्क़ नही है सिवाए इसके की निकाह की कोई समय-सीमा नही बँधी होती| दोनो ही तरह की शादियों में आदमी पहले से शादी-शुदा औरत के साथ निकाह नही कर सकता| एक औरत निकाह मुताह नही कर सकती जब तक की वो फिर से पवित्र ना हो जाए इद्दाह का पालन कर के, अपने पुराने पति से अलग होने के बाद! दोनो ही तरह की शादियों से पैदा हुए बच्चों का हक़ भी एक सा ही होता है और उन में कोई फ़र्क नही किया जाता!
लेकिन इसका ग़लत इस्तेमाल हो रहा है वेश्यावृति के लिए! अरब देशों में बहुत से मर्द इस तरह का निकाह मुताह करते हैं कुछ घंटों या कुछ दिनों के लिए जिसके एवज़ में उनकी अस्थाई पत्नियों को पैसा दिया जाता है| इसी वजह से सुन्नी समाज, जो निकाह मुताह के बिल्कुल ख़िलाफ़ है, इस प्रथा का जम के विरोध करता है| इतना ही नही, शीया समाज में भी कई लोगों ने इस पर सवाल उठाए हैं लेकिन बुद्धिजीवी और धर्म के कुछ ठेकेदार इस्लाम में कही बातों को तरोड़-मरोड़ के अपनी सुविधा अनुसार निकाह मुताह को सही ठहराते हैं|
यही वजह है कि जिस निकाह को मंज़ूरी एक अच्छे कारण के लिए दी गयी थी, वो अब केवल देह का व्यापार बन के रह गया है और एक से ज़्यादा शादियाँ की आढ़ में मर्द इसका ग़लत फ़ायदा उठा रहे हैं!
उम्मीद है धर्म के नाम पर महिलाओं का शोषण बंद हो और जो कुछ भी क़ुरान में लिखा गया है, उसका सही मतलब समझ कर ही उसका पालन किया जाए!