मिस्बाह कादरी नाम की मीडिया प्रोफेशनल ने दावा किया की मुस्लिम होने की वजह से उन्हें वडाला के एक फ्लैट से निकाला गया.
मामला काफी उछला.
2 दिनों तक मीडिया में छाया रहा. बहस चली कि मुस्लिमों की स्तिथि देश में क्या है?
मिस्बाह कादरी ने कह दिया और मीडिया ने बिना किसी जांच पड़ताल के सच मान लिया. ये कितना सही है?
तो पहले मिस्बाह कादरी के लगाये आरोप के बारे में जानते हैं-
मिस्बाह कादरी ने आरोप लगाया की मुस्लिम होने की वजह से उन्हें फ्लैट से निकाला गया. वडाला के सांघवी हाइट्स के दसवें तल्ले में मिस्बाह कादरी रहने आई. यहाँ 2 हिन्दू लड़कियां पहले से रह रही थी, जिन्होंने इन्टरनेट पर रूम पार्टनर के लिए विज्ञापन दिया था. कादरी ने बताया की ब्रोकर ने उन्हें सोसाइटी की तरफ से NOC साइन करने को कहा, जिसमे लिखा होगा की उनके धर्म की वजह से पड़ोसी उनके साथ किसी तरह का भेदभाव करते हैं तो फ्लैट का मालिक, बिल्डर और ब्रोकर कानूनी रूप से जिम्मेदार नहीं होगा।
कादरी ने इसपर साइन करने से मना कर दिया तो उन्हें फ्लैट से निकाल दिया गया. मिस्बाह ने इसकी शिकायत नेशनल कमीशन ऑफ़ माइनॉरिटीज में की.
अब कहानी का दूसरा पहलू देखते हैं-
तो सांघ्वी हाइट्स सोसाइटी में पहले से ही तीन मुस्लिम रेसिडेंट्स रहते हैं. जिनसे कभी किसी भी प्रकार की NOC साइन नहीं करायी गयी. इन्हें भी उसी ब्रोकर ने फ्लैट दिलाया जिससे मिस्बाह की बातचीत हुई.
इनके साथ धर्म के नाम पर कोई भेदभाव नहीं हुआ. दरअसल मिस्बाह कादरी ने जरूरी कागजात जमा नहीं किये थे, जिसके कारण ब्रोकर ने 16 अप्रैल को ही एक ऍफ़ आई आर दर्ज कराया था.
हमने कहानी के दोनों पहलू पर गौर फ़रमाया. अब सवाल यहाँ ये भी उठता है की जब 6 अप्रैल को कादरी उस फ्लैट में रहने गयी और 16 अप्रैल तक उन्होंने कागजात जमा नहीं किये.
और ब्रोकर ने उनके खिलाफ ऍफ़ आई आर कराया, तो एक महीने बाद ये घटना क्यूँ उठाई गयी ?
क्या सही वक़्त का इंतज़ार किया जा रहा था?
मोदी सरकार के एक साल पूरे होने पर इसको एक कम्युनल शक्ल देने की कोशिश की गयी. जिस एक्टिविस्ट शेहजाद पूनावाला ने कादरी का हमदर्द बनकर उनके साथ NCM में एप्लीकेशन डाली, वो हमेशा से टीवी में कांग्रेस समर्थक के तौर पर बोलते आये हैं.
और इन सब के बीच अब वो वक़्त आ गया है की ब्रेकिंग न्यूज़ और टीआरपी के पीछे भागती मेनस्ट्रीम मीडिया को आत्मपरिक्षण करना चाहिए.
किसी भी कहानी के दोनों पहलू जाने बगैर उसे कैसे चलाया जा सकता है.
लोगो का मीडिया पर से भरोसा उठता जा रहा है.
और ऐसे उदहारण देकर मीडिया अपनी विश्वसनीयता खोती जा रही है.
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