इस सृष्टि के आदी और अंत कहे जानेवाले भगवान शिव की पूजा हर कोई शिवलिंग के रुप में करता है.
कहते हैं कि भगवान शिव शिवलिंग में साक्षात रुप से विराजमान रहते हैं और अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं.
अगर आप भगवान शिव के भक्त हैं और उनकी पूजा करते हैं तो आपके लिए ये जानना जरूरी है कि आखिर सबसे पहला शिवलिंग कहां और कैसे स्थापित हुआ था.
तो चलिए शिवलिंग के स्थापित होने से लेकर उसे पूजने की परंपरा की शुरूआत की कहानी के बारे में विस्तार से जानते हैं.
क्या कहता है लिंगमहापुराण ?
सबसे पहला शिवलिंग की स्थापना को लेकर लिंगमहापुराण में एक जिक्र मिलता है. इसके अनुसार एक बार भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच अपनी-अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया.
अपने आप को श्रेष्ठ बताने के लिए दोनों एक-दूसरे का अपमान करने लगे. जब दोनों का यह विवाद चरम सीमा तक पहुंच गया तब अग्नि की ज्वालाओं से लिपटा हुआ एक विशाल लिंग दोनों देवों के बीच आकर स्थापित हो गया.
इस लिंग को देखकर दोनों देव इस रहस्य को उजागर करने के लिए इसके मुख्य स्रोत का पता लगाने में जुट गए. भगवान ब्रह्मा उस लिंग के ऊपर की तरफ बढ़े और भगवान विष्णु नीचे की ओर जाने लगे.
हजारों सालों तक दोनों देव इस लिंग के मुख्य स्रोत की तलाश करते रहे लेकिन दोनों इसका पता लगाने में नाकाम रहे. जिसके बाद दोनों ने हार मान ली और फिर उसी जगह पर आ गए जहां उन्होंने उस विशाल लिंग को देखा था.
इस विशाल लिंग से प्रकट हुए महादेव
जब दोनों देव उस लिंग के पास पहुंचे तो उन्हें वहां ओम का स्वर सुनाई देने लगा. इस स्वर को सुनकर दोनों को यह अनुमान हो गया है कि यह कोई शक्ति है. लिहाजा दोनों देव ओम के स्वर की आराधना करने लगे.
भगवान ब्रह्मा और विष्णु की आराधना से भगवान शिव बेहद प्रसन्न हुए और उस विशाल लिंग से स्वयं प्रकट हुए. उन्होंने दोनों देवों को सदबुद्धि का वरदान दिया और वहीं उस विशाल शिवलिंग के रुप में स्थापित होकर वहां से अंतर्ध्यान हो गए. लिंगमहापुराण के अनुसार यही विशाल लिंग भगवान शिव का सबसे पहला शिवलिंग माना जाता है.
सबसे पहले ब्रह्मा और विष्णु ने की थी पूजा
शिवलिंग के रुप में स्थापित होने के बाद जब भगवान शिव वहां से अंतर्ध्यान हो गए तब सबसे पहले भगवान ब्रह्मा और विष्णु ने ही उस शिवलिंग की पूजा-अर्चना की थी. कहा जाता है कि उसी समय से भगवान शिव की लिंग के रुप में पूजा करने की परंपरा की शुरूआत हुई थी.
बहरहाल लिंगमहापुराण के अनुसार यह भी कहा जाता है कि सबसे पहला शिवलिंग स्थापित होने के बाद भगवान ब्रह्मा ने देव शिल्पी विश्वकर्मा को सभी देवताओं के लिए अलग-अलग शिवलिंग का निर्माण करने के लिए कहा था. जिसके बाद भगवान विश्वकर्मा ने अलग-अलग शिवलिंग बनाकर सभी देवी-देवताओं को प्रदान भी किए थे.
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