ईश्वर ने हर चीज सोच समझ कर बनाई है.
शास्त्रों में बोला गया है कि जैसा करो संग वैसा होवे मन.
जिस तरह की संगत हम करते हैं उसी तरह से फिरहमारा आचरण और व्यवहार हो जाता है.
अब कई बार हम तीर्थ स्थलों पर जाते हैं और वहां बिना सोचे-समझे कहीं भी पूजा-पाठ और स्नान आदि करने लगते हैं. लेकिन यह गलत है. खासकर अगरआप तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं तो आपको ध्यान रखना होगा कि वहां काफी चीजें ऐसी हैं जिनका प्रयोग करना मना होता है.
अगर कैलाश मानसरोवर तीर्थ यात्रा पर कभी आप जाते हैं तो वहां एक जल स्रोत ऐसा है जिसको छूने तक की मनाही की गयी है. इंसानों के लिए यहाँ के जलका प्रयोग मना कर रखा है.
राक्षस ताल कहाँ
राक्षस ताल लगभग 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र, 84 किलोमीटर की परिधि तथा 150 फुट की गहराई में यह फैला है. प्रचलित है कि यहाँ राक्षसों के राजा रावण ने भगवान शिव की आराधना की थी. इसी वजह से इस जल ताल को राक्षस ताल या रावण ह्द बोला जाता है.
एक छोटी सी नदी गंगा-चू दो झीलों को आपस में जोड़ती है. यह ताल तिब्बत में मानसरोवर और कैलाश के पास स्थित है. सबसे बड़ी बात यह है कि जहाँमानसरोवर जल स्रोत का जल मीठा है और यहाँ कई तरह के जलीय जीव हैं वहीँ राक्षस ताल का जल खारा है और यहाँ कोई जलीय जीव नहीं है.
राक्षस ताल का शास्त्रों में वर्णन
हमारे धर्म शास्त्रों में यहाँ के जल को छूने तक की मनाही की गयी है. आप इस बात का सबूत भी वहां देख सकते हैं कि यहाँ के पक्षी भी इस जल का प्रयोगनहीं करते हैं. यहाँ पर पूजा-पाठ का भी कोई विधान नहीं बताया गया है. कहते हैं कि अगर कोई गलती से भी इसके जल से स्नान कर बैठे तो उसके साथअनिष्ट होना निश्चित हो जाता है. हमारे धर्म-शास्त्रों में बताया गया है कि जब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश में तपस्या की थी तोउसने इसी जल का प्रयोग किया था. तब से ही यह जल खारा है और यहाँ का जल कोई भी प्रयोग नहीं करता है.
तो अब अगर आप कभी कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जा रहे हैं तो ध्यान रखें कि राक्षस ताल का जल प्रयोग नहीं करना है.
वैसे यहाँ जाने वाले तीर्थयात्रियों को यह जानकारी पहले ही दे दी जाती है.
मुख्य जल स्रोत और यह स्रोत काफी नजदीक ही हैं. इसलिए इस बात का विशेष ध्यान रखने कीआवश्यकता होती है.