कभी-कभी इस देश के हालात पर दया आती हैं.
यहाँ उन लोगों की कभी कद्र नहीं की जाती हैं जो असल में उसके हक़दार होते हैं और यदि बात खेल की हो तो स्थिति इतनी बद्दतर हैं कि उसके बारे में चाहे आप न्यूज़ बना ले या आर्टिकल लिख ले, सरकार के कान में जूं नहीं रेंगती हैं.
वैसे यह सवाल आप से भी हैं, क्या आप ओलम्पिक खेलों में भारत के पहले ओलम्पिक मैडल जीतनेवाले खिलाड़ी का नाम जानते हैं? नहीं न!!
खैर इसमें आपकी भी कोई गलती नहीं हैं क्योकि आप तक ऐसे खेलों से जुड़ी जानकारी, असल में आती तो सरकार और खेल विभाग के माध्यम से ही हैं न. और यदि वही से इन खेलों को और इनसे जुड़़ी खबरों को तवज्जो न दी जाये तो आप भी कुछ नहीं कर सकते हैं.
चलियें हम बतातें हैं आपको कि किस भारत खिलाड़ी ने ओलम्पिक में भारत के लिए पहला पदक लाया था.
उस खिलाड़ी का नाम “खाशाबा दादासाहेब जाधव” हैं.
महाराष्ट्र के रहने वाले खाशाबा पेशे से एक पहलवान थे जिन्होंने ने 1952 के हेलसिंकी में हुए ओलम्पिक में कुश्ती के लिए भारत को पहला पदक दिलाया था. लेकिन अपने देश भारत के लिए अपनी पूरी ज़िन्दगी दे देने वाले खाशाबा को अपने देश के लिए खेलने पर भी सरकार द्वारा एक पैसे की मदद नहीं मिली.
महराष्ट्र के इस खिलाड़ी के अपने कुश्ती के शौक और उस खेल के प्रति समर्पण को देखकर उनके गाँव और घरवालें ने हमेशा उनका साथ दिया. खाशाबा की लगन को देखकर कोल्हापुर रियासत के राजा ने 1948 में आयोजित हुए ओलम्पिक खेलो के लिए उनके खेलों में भाग लेने की पूरी व्यवस्था भी करायी, लेकिन उस ओलम्पिक में खाशाबा कुछ खास नहीं कर पाए जिसके चलते उनके सभी समर्थक दूर होने गए. परन्तु अपनी एक हार से निराश न होकर खाशाबा ने 1952 में होने वाले ओलम्पिक में फिर से हिस्से लेना का मन बनाया.
पिछली असफलता के चलते इस बार खाशाबा की किसी ने भी मदद नहीं की.
खाशाबा उस वक़्त की तत्कालीन सरकार तक अपनी बात लेकर गए लेकिन वहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी. सब जगह से निराश होकर खाशाबा ने अपने संकल्प के चलते खुद पुरे गाँव में भीख मांगकर जाने के लिए रुपये जुटाना तय किया पर भीख मांगकर वह केवल 4000 रुपये ही आ पाए जो, ओलम्पिक में जाने के लिए बहुत कम थे. फिर खाशाबा की लगन से प्रभावित होकर उनके गाँव में बने स्कूल के प्रिंसिपल ने उन्हें 7000 रुपए की मदद देकर उनका ओलम्पिक जाना संभव कराया था और 1952 में आयोजित हुए ओलम्पिक में खाशाबा खेलते हुए कुश्ती में भारत के लिए “पहला कांस्य पदक” जीता.
आप बता दे कि खाशाबा ही भारत में खेल कोटा परंपरा की शुरुआत करने वाले पहले व्यक्ति थे क्योकि जब वह ओलम्पिक से पदक लेकर लौटे तो सरकार को लज्जित होकर उनका स्वागत करना पड़ा और खेल कोटे की तरफ से उन्हें महारष्ट्र पुलिस नौकरी भी देनी पड़ी.
लेकिन खाशाबा दादासाहेब जाधव ने अपनी पूरी ज़िन्दगी सरकार की ओर से मिली बेरुखी के चलते आभाव में ही गुज़ारे और 1983 में बीमारी के कारण चल बसे.
अब इसे देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि जिस खिलाड़ी को ओलम्पिक में अपने देश के लिए खेलने जाने की बात पर भीख मांगना पड़ा था तो हम ऐसी सरकार से क्या उम्मीद रखे .
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