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वो वीरांगनाएँ जिन्होंने बदली क्रांति की परिभाषा, अब है कोई ऐसी?

जब कभी भारत की महिलाओं की बात कोई छेड़ता है, तो सबसे पहले पराक्रमी रानी लक्ष्मी बाई का जिक्र होता है.

आज हम ऐसी ही महिलाओ का जिक्र करेंगे जिन्होंने क्रांतिकारी गाती विधियों में अपना योगदान निडर होके दिया और कुछ ऐसी भी वीरांगनाएँ जिन्होंने असंभव प्रयास करते हुए किसी भी युग में न भूलने वाला काम किया और अमर हो गयी.

१.      कित्तूर रानी चेन्नम्मा

चेन्नम्मा रानी को शायद ही कोई याद करता होगा. रानी ने अपने कार्य से ब्रिटिश राज को सोचने पे मजबूर कर दिया था, कि कोई भारतीय महिला भी इतनी शुरवीर हो सकती है.

ब्रिटिश सेना ने जब कित्तूर पर अपनी नज़र डाली तब रानी ने उनको आगाह किया.

किंतु ब्रिटिश सेना को तो कित्तूर का खजाना चाहिए था, वहा राज करना था.

जब ब्रिटिश सेना ने कित्तूर पर हमला किया, तब रानी चेन्नम्मा ने खुद अपनी सेना के साथ युद्ध किया और ब्रिटिश सेना की अकल ठिकाने लगाईं थी.

ऐसे वीरता की  प्रतीक थी रानी चेन्नम्मा, जिसका बुत २०११ में भारतीय संसद परिसर में अनावरण किया गया.

२३ अक्टूबर १७७८  – २१  फ़रवरी १८२९ (५० आयु वर्ग)

२.      बेगम हज़रत महल

यह वो क्रांतिकारी महिला थी जिन्होंने अपने फौज में सबसे अधिक महिलाओं को शामिल किया.

उस दौर में किसी आम महिला का इस तरह मैंदान में आना बेशर्मी से भरी बात थी.

तब बेगम हज़रत महल ने महिलाओं के मन में देश भक्ति की ऐसी भावना जगाई कि कई महिलांए उनका साथ देने पर विवश हो गई.

ब्रिटिश सेना के साथ कई दिनों तक लड़ते लड़ते जब बेगम हार गई तो अवध के देहात में जाकर एक साधारण महिला की तरह अपना जीवन बिताया.

हार के बावजूद देहात में बेगम ने उम्मीद जगाई रखी और युवाओं के मन में देश प्रेम की चिंगारी लगाईं.

हौसले पस्त होने के बाद भी उम्मीद जगाये रखना और कार्य करते रहना, यही बात बेगम महल को हटके बनाती है.

अंदाजन १८२० – ७ अप्रैल १८७९ (५९ आयु वर्ग)

३.      रानी लक्ष्मीबाई

इनके बारे कौन नहीं जानता. जिनको ईतिहास भी पता नहीं होता उन लोगों को भी इस वीरांगना का नाम पता है.

रानी लक्ष्मीबाई (मणिकर्णिका) बचपन से ही लड़कों जैसी पली बड़ी.

किंतु शादी के बाद पत्नी धर्म निभाते वक़्त लक्ष्मी बाई का देश प्रेम जाग उठा.

एक उत्तम गृहणी होने के बावजूद वह एक बहादुर रानी थी.

रानी लक्ष्मीबाई ने अपने पुत्र को अपनी पीठ पर बाँध कर अंग्रेजो से युद्ध किया।

19 नवंबर १८२८ – १७ जून १८५८ (२९ आयु वर्ग)

४.      सावित्रीबाई फुले

सावित्रीबाई भारत के प्रथम कन्या विद्यालय में प्रथम महिला शिक्षिका थीं.

यह सुनने में बहुत अच्छा और सहज लगता है.

मगर जिस जमाने में महिलाओं का अकेले घर से बहार निकलना मना था. उस परिस्थितियों में पति धर्म निभाती सावित्री बाई बच्चों को पढ़ने घर से बाहर निकलती थी.

समाज के ठेकेदार उस पर गोबर के गोले फेकते गंदी बाते करते.

किंतु सावित्री बाई के इरादे चट्टान की भाति अडिंग रहे।

पढाई हेतु विदेश में रह कर आई सावित्री बाई ने अपने संस्कारों को कभी नहीं छोड़ा.

लेकिन आज समाज के ठेकेदार इनका नाम केवल सत्ता की लालच हेतु ही लेते है.

३ जनवरी १८३१ – १० मार्च १८९७ (६६ आयु वर्ग)

५.      सरोजिनी नायडू

यह भारत की कोयल थी जिसने महिलाओं के आज़ादी के लिए पहला कदम उठाया.

हिंदु मुस्लिम एकजुट का स्वप्न जो आज भी कोई समाज का सुधारक नहीं देखता उस कार्य पर सरोजिनी ने काम किया.

भारत की परिस्थिति बदलने के लिए विकास के काम किये.

बदलते युग के साथ यह क्रांतिकारी महिला केवल पाठशाला की पुस्तको तक ही सीमित रह गयी.

१३ फ़रवरी १८७९ – २ मार्च १९४९ (७० आयु वर्ग)

इन महान महिलाओं ने अपना योगदान एक अच्छे समाज के उद्धार के लिए दिया. विकट परिश्थितियों में अपने हौसले बुलंद करने वाली इन महिलाओं ने मानसिक प्रताड़ना झेली. मगर उनका एक ही लक्ष्य रहा, स्वराज में खुशहाली और महिलाओं की आजादी.

किंतु आज शहर की महिलाए आधुनिक और गांव की पिछड़ी हुई दिखाई देती है.

क्या इन क्रांतिकारी महिलाओं को केवल उनके तिथि पर याद करके भूलना मुनासिफ है?

क्या हमे ऐसी महिला की आज भी आवश्यकता है?

जिसके चलते भारतीय महिला सही मायने में आज़ाद हो जायेगी.

अगर हा है, तो जगाइए खुद में छिपी रानी लक्ष्मी बाई और बेगम हजरत महल को.

और अपने साथ अपने जैसे बहनों का मार्गदर्शन करे, जीवन का उद्धार करे.

Neelam Burde

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