भारत और चीन सीमा विवाद कुछ ऐतिहासिक कारणों से है. इसकी जड़ें रुसी और ब्रिटिश साम्राज्यों के बीच हुए बड़े खेल में है. देखा जाए तो इसकी शुरुआत 1807 में रूस की संधि पर हस्ताक्षर से हुई और समापन 1907 में परसिया (ईरान) की संधि से हुआ. भारत की सीमाएं दो चीनी क्षेत्रों से मिलती हैं. एक सीमा अक्साई चिन शिनजियांग स्वायत्त क्षेत्र में और दूसरी तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र से मिलती है. दोनों देशों के बीच नौ विवादित क्षेत्र हैं. इनमें अक्साई चिन और तवांग प्रमुख हैं. 17 मार्च, 1890 को अंग्रेज़-चीनी समझौते में बताई गई सिक्किम-तिब्बत सीमा को छोड़कर अन्य किसी भी हिस्से को द्विपक्षीय ढंग से चिन्हित नहीं किया गया है.
तिब्बत का 1640 तक लद्दाख पर और 17 मार्च, 1890 तक सिक्किम पर आधिपत्य था. तवांग वाला भूभाग दक्षिणी तिब्बत के रूप में जाना जाता था. यहीं छठे दलाई लामा का जन्म हुआ था. इस पर 20 जनवरी, 1951 से पहले किसी भारतीय ने शासन नहीं किया था. ये ऐसे ऐतिहासिक तथ्य हैं जिनसे इंकार नहीं किया जा सकता.
वहीं, अक्साई चीन 1890 तक नो मैन्स लैंड था. लद्दाख 1834 तक स्वतंत्र था. इस पर महाराजा रणजीत सिंह ने विजय पाई थी. आधुनिक इतिहास में चीनी साम्राज्य के अधीन शिनजियांग और तिब्बत तक किसी भारतीय शासक के सीमा फैलाने की वो पहली घटना थी. प्रथम अंग्रेज़-सिख युद्ध के बाद लद्दाख समेत जम्मू-कश्मीर को अमृतसर में हुए समझौते के अनुसार डॉ. कर्ण सिंह के पूर्वज महाराजा गुलाब सिंह को दे दिया गया. 1802 में भारत का सर्वेक्षण शुरू हुआ. भारत में जन्मे सहायक सर्वेयर विलियम जॉनसन को इस कार्य का जिम्मा सौंपा गया. जॉनसन ने अक्साई चिन को जम्मू-कश्मीर में शामिल कर लिया और अपना नक्शा देहरादून स्थित भारत के सर्वेयर जनरल को भेज दिया. जम्मू-कश्मीर के शासक ने कब्ज़े के लिए फौरन अपनी सेना भेज दी और शाहिद्दौला में महल का निर्माण कर लिया. ये ल्हासा-काशगर और लेह-काशगर व्यापार मार्ग के मिलन स्थल पर स्थित था. 19वीं शताब्दी के मध्य से बड़ा खेल शुरू हुआ. रूस और ब्रिटिश साम्राज्य अधिकतम क्षेत्र हड़पने की होड़ में लगे थे. अंग्रेजों के प्रभाव क्षेत्र वाले अफ़ग़ानिस्तान और रुसी क्षेत्रों के बीच सीमा का नक्शा खींचने के लिए रूस की राजधानी में बातचीत शुरू की गई. वहीं, अंग्रेजों की नज़र दक्षिण पूर्वी काराकोरम और कुनलुन शान के बीच बड़े नो मैंस लैंड पर पड़ी. उन्होंने चीनियों को उस पर कब्ज़े के लिए प्रोत्साहित किया क्योंकि वे खुद रूसियों से आंख नहीं मिलाना छह रहे थे. 1892 में चीनियों ने काराकोरम जलविभाजक क्षेत्र से सटे इलाके में सीमा के खंबे गाड़ दिए और अक्साई चीन को अपने क्षेत्र में शामिल कर लिया.
बीजिंग में कम्युनिस्ट शासन की घोषणा 1 अक्टूबर, 1949 को की गई. चीनी गणराज्य को मान्यता देने वाला भारत पहला गैर-कम्युनिस्ट देश था. एक साल के अंदर चीन नें तिब्बत पर नियंत्रण कर लिया. नेहरु का विरोध नरम था लेकिन असं के राज्यपाल जयराम दास रामदास सतर्क हो गए. उन्होंने नेहरू को बिना बताए दूसरे विश्व युद्ध के हीरो और नागा मेजर रालेंगनाव बॉब खटिंग को एक कार्य सौंपा. असम राइफल्स के तीन अफसरों और दो सौ दूसरे रैंक के जवानों के बल पर मेजर खटिंग ने तवांग के तिब्बती कमिश्नर जोंगपोंग से भारतीय हिस्से में तवांग के हिस्सों में घुसपैठ की बात पर हस्ताक्षर करा लिए. जो कार्य अंग्रेज़ भी नहीं कर सके थे वैसा अभूतपूर्व कार्य कर डालने से उत्साहित जयराम दास रामदास नेहरु को सूचना देने मेजर खटिंग के साथ दिल्ली पहुंचे. उनकी प्रशंसा करने की जगह नेहरु ने उन लोगों को भरी नासमझी के लिए डाटा. उन्होंने तवांग पर कब्ज़े की खबर को पूरी तरह ब्लैक आउट का आदेश दिया अन्यथा चीन नाराज़ हो सकता था. इतिहास की गलतियां सीमा मुद्दे पर नेहरु की अकुशल राजनीति के कारण और उलझती गई. नेविले मैक्सवेल ने उन्हें नेहरूवादी बोझ का पहाड़ कहा है. अगर टिकाऊ समाधान चाहिए तो मोदी सरकार को इन उलझनों को सुलझाना चाहिए.