दुनिया के हर माता-पिता अपने बच्चों का लालन पालन बड़े ही प्यार से करते हैं और ये उम्मीद करते हैं कि उनके बच्चे बड़े होकर उनके बुढ़ापे का सहारा बनें.
लेकिन क्या वाकई में जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो वो अपने माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा बन पाते हैं?
क्योंकि आज हम जो खबर आपको बताने जा रहे हैं उसे जानकर आपके होश उड़ जाएंगे.
घर के बुजुर्गों के साथ हैवानियत का खेल
दुनिया भर में सालों से चली आ रही किसी न किसी परंपता और मान्यता का पालन किया जाता है. लेकिन भारत के तमिलनाडू राज्य में सालों से परंपरा के नाम पर खेला जा रहा है हैवानियत का घिनौना खेल. जहां घर के बड़े-बुजुर्गों को पंरपरा के नाम पर मौत के घाट उतार दिया जाता है.
इस राज्य में सालों से निभाई जा रही इस परंपरा का नाम ठलाईकूठल है, जिसके तहद घर के बुजुर्गों को बगैर उनकी मर्जी के सरेआम मौत के घाट उतार दिया जाता है.
जानकारी के मुताबित यहां बुजुर्गों को तब मौत के घाट उतारा जाता है जब वो किसी लाइलाज बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं और गरीबी के चलते उनका इलाज नहीं हो पाता है. इतना ही नहीं जिन परिवारों के लिए उनके घर के बुजुर्ग बोझ बन जाते हैं तब सरेआम उनके प्राणों की आहुति दे दी जाती है.
महोत्सव की आड़ में खेला जाता है मौत का खेल
जिन बच्चों को लाख तकलीफें झेलने के बाद जो माता-पिता अपने बच्चों को पाल पोसकर बड़ा करते हैं. वही माता-पिता जब बूढ़े हो जाते हैं तो फिर उन्ही के बच्चे उनकी जान के दुश्मन बन जाते हैं.
हालांकि यहां बुजुर्गों के साथ किसी से छुपकर ये हैवानियत का खेल नहीं खेला जाता है. बल्कि इस घिनौने काम को अंजाम देने के लिए बकायदा गांव में महोत्सव का आयोजन किया जाता है.
इस महोत्सव के दौरान गांव के हर घर का हर सदस्य इकट्ठा होता है. घर के बेबस और असहाय बुजुर्गों को भी इस महोत्सव में लाया जाता है. जिसके बाद सभी लोग मिलकर बुजुर्गों के साथ हैवानियत के इस खेल को अंजाम देते हैं.
हालांकि महोत्सव के दौरान सालों से निभाई जानेवाली ये ठलाईकूठल परंपरा पूरी तरह से गैर कानूनी है लेकिन बावजूद इसके लोग सालों से ठलाईकूठल परंपरा के नाम पर बुजुर्गों की बलि चढ़ा रहे हैं.
बुजुर्गों को मारने के लिए अपनाए जाते हैं ये तरीके
इस महोत्सव के दौरान घर के बड़े-बुजुर्गों को मारने के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं जिससे उनकी मौत जल्दी हो जाए.
बुजुर्गों को मारने के लिए उन्हें मिट्टी मिलाकर पानी पिलाया जाता है जिससे उनका पेट खराब हो जाता है और उनकी मौत हो जाती है.
इसके अलावा सुबह-सुबह बुजुर्गों को तेल से नहलाया जाता है और फिर दिनभर में कई ग्लास नारियल पानी पिलाया जाता है जिससे उनके गुर्दे खराब हो जाते हैं.
इस तरीके से भी अगर कोई बुजुर्ग जिंदा बच जाता है तो फिर उसे ठंडे पानी से स्नान कराया जाता है ताकि उसे हार्ट अटैक आ जाए और उसके प्राण निकल जाए.
कभी-कभी तो बुजुर्गों की नाक बंद करके उन्हें दूध पिलाया जाता है ऐसा करने से उनकी सांसे तुरंत थम जाती है और उनकी मौत हो जाती है.
गौरतलब है कि ठलाईकूठल परंपरा के नाम पर बुजुर्गों के साथ हैवानियत का ये घिनौना खेल सालों से खेला जा रहा है. अब आप ही तय कीजिए कि परंपरा के नाम पर इस तरह से बुजुर्गों की बलि देना किस हद तक जायज है.
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