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भारत के इस मंदिर में देवी-देवता की नहीं, बल्कि इस जानवर की पूजा होती है !

कुकरदेव मंदिर

कुकरदेव मंदिर – भारत में हज़ारों-लाखों मंदिर है और कई मंदिर बहुत अनोखे भी हैं.

कहीं चूहे रहते हैं तो किसी मंदिर का दरवाज़ा कभी बंद नहीं होती. विविधताओं वाले इस देश में ढेर सारी मंदिरों के पीछे ढेर सारी कहानियां भी हैं. हिंदू देवी देवताओं के मंदिर तो आपने बहुत देखे होंगे लेकिन क्या कभी आपने कभी कुत्ते के मंदिर के बारे में सुना है. शायद नहीं, लेकिन ऐसा ही एक अनोखा मंदिर है छत्तीसगढ़ के राजनाद गांव में. इस मंदिर का नाम ही है कुकरदेव मंदिर, अब आप समझ गए होंगे कि यहां देवी-देवताओं की नहीं, बल्कि कुत्ते की पूजा की जाती है.

कुकरदेव मंदिर

आमतौर पर हिंदू धर्म में मंदिरों में कुत्ते का प्रवेश शुभ नहीं माना जाता, ऐसे में कुत्ते का कुकरदेव मंदिर होना और उसकी पूजा करना बहुत अजीब है.

छत्तीसगढ़ के राजनाद गांव में कुकरदेव मंदिर निर्माण 14वीं-15वीं शताब्दी में फणी नागवंशी शासकों द्वारा कराया गया था. यह मंदिर असल में भैरव बाबा का स्मृति चिन्ह हैमंदिर में शिवलिंग है और दीवारों पर नागों जैसी आकृतियां बनी हुई हैं. यहां राम-लक्ष्मण की मूर्ति है और आंगन में कुत्ते की मूर्ति है, मंदिर के आंगन में शिलालेख हैजिस पर बंजारों की बस्तीचांद-सूरज और तारों की आकृति बनी हुई है. यहां राम लक्ष्मण और शत्रुघ्न की मूर्ति भी है और मंदिर के आंगन में कुत्ते की प्रतिमा.

कुकरदेव मंदिर

इसके अलावा एक पत्थर से बनी दो फीट की गणेश प्रतिमा भी मंदिर में स्थापित है.

कुकरदेव मंदिर से जुड़ी कहानी

मान्यता के मुताबिककभी यहां बंजारों की बस्ती हुआ करती थी. मालीघोरी नाम के बंजारे के पास एक पालतू कुत्ता था. बंजारे को अकाल पड़ने के कारण अपने प्रिय कुत्ते को जमींदार के पास गिरवी रखना पड़ा. इसी बीचजमींदार के घर चोरी हो गईकुत्ते ने चोरों को चोरी किया हुआ सामान पास ही के एक के तालाब में छिपाते हुए देख लिया था. सुबह कुत्ता जमींदार को उस जगह पर ले गया और उसे चोरी का सामान भी मिल गया.

कुकरदेव मंदिर

कुत्ते की वफादारी देख जमींदार बहुत प्रसन्न हुआ और उसने परिस्तिथि को विस्तार में एक कागज़ में लिखकर उसके गले में बांध दिया और असली मालिक के पास जाने के लिए कुत्ते को मुक्त कर दिया. बंजारे ने अपने कुत्ते को लौटता आया देख डंडे से पीट-पीटकर मार डाला.

कुकरदेव मंदिर

फिर कुत्ते के गले में बंधी चिट्ठी पढ़कर बंजारे को अपनी गलती का अहसास हुआ. प्रायश्चित के तौर पर उसने अपने प्रिय स्वामी भक्त कुत्ते की समाधि मंदिर में आंगन में बनवाई. बाद में किसी ने कुत्ते की मूर्ति भी लगवा दी. आज भी यह स्थान कुकुरदेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. माना जाता है जो भी इस मंदिर में आकर कुकुरदेव की पूजा करता है उसे कभी कुकुर खांसी या कुत्ते के काटने से होने वाली बीमारियां नहीं होतीं. यह आस्था का विषय है जब लोग पत्थर को भगवान समझकर पूज सकते हैं, तो ऐसा भी कर सकते हैं, भारत जैसे देश में कुछ भी असंभव नहीं है.

यदि आप भी इस अनोखे कुकरदेव मंदिर को देखना चाहते हैं तो इस बार छुट्टियों में ज़रूर कुकरदेव के मंदिर जाएं. वहां जाने पर आपको आस्था का असली रंग दिखेगा.