गुरु शिष्य परंपरा और आज की शिक्षा पद्धति
कुछ आकड़ों के अनुसार भारत में 31 करोड़ से अधिक विद्यार्थी हैं, इनमें स्कूल और कॉलेज दोनों के छात्रों का समावेश है. वास्तविकता आप जानते ही हैं कि इतने विद्यार्थियों में से कितने विद्यार्थी वास्तव में शिक्षा प्राप्त करने आते हैं. भारत में शिक्षा का बड़ा महत्त्व रहा है और भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा का. गुरु-शिष्य परंपरा का उल्लेख हम सभी पुराणों में पा सकते है जैसे की उपनिषद्, महाभारत आदि परन्तु वो एक अलग युग था और आज का युग अलग है. आज गुरु- शिष्य का रिश्ता रह कहाँ रह गया है?
चलिए देखते हैं की कलयुग में कितना बदल गया है ये रिश्ता
- गुरु-शिष्य परंपरा के अनुसार प्रत्येक शिष्य/ विद्यार्थी अपने गुरु के हर आदेश का पालन करता था अगर वे रात को दिन बोलें तो दिन समझा जाता था और दिन को रात कहे तो रात ही समझी जाती थी. हम आज समझते हैं कि इतना आज्ञाकारी बनना आज के युग में मुश्किल है. अब तो गुरु की हर बात को उल्टा ही लिया जाता है. जब द्रोणाचार्य ने एकलव्य से अंगूठा माँगा था तो अगले ही पल एकलव्य ने अंगूठा कांट के दिया था और अब शिक्षक चिल्ला-चिल्ला के कुछ साधारण सा भी बोलते हैं तब भी आज के शिष्य अनदेखा करते है.
- आज हमें किसी भी प्रश्न का तुरंत उत्तर चाहिए होता है तो हम गूगल महाराज का ही प्रयोग करते हैं. जय हो गूगल की. जब आप यह लेख अपने मोबाइल या कंप्यूटर से पढ़ रहे है फिर तो आप डिजिटल युग का प्रभाव समझ ही सकते है. डिजिटल युग के इसी प्रभाव से शिक्षक अब केवल उपदेशक बन गए है और ज्ञान का स्त्रोत गूगल.
- गुरु ब्रम्हा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा, जिस गुरु को भारतीय संस्कृति में देव का दर्जा दिया गया है उसी शिक्षक को आज न-जाने हम कितने तुच्छ नाम से बुलाते है. कोई नाम से बुलाता है, कोई उपनाम से, कोई उन्हें छेड़ता है तो कोई उनका मजाक बनाता है.
- जब भगवन श्री कृष्ण ने कुरूक्षेत्र में भगवद्गीता गाई, तब अर्जुन ने उनसे ढेर सारे सवाल किये और फिर सभी प्रश्नों का निवारण होने के बाद कठोर पालन भी किया और इसी कारण भगवद्गीता हमारे लिए इतनी महत्वपूर्ण है. अर्जुन ने भगवान से सवाल किये पर कभी इनकी साख पर शक नहीं किया. आज हम शिक्षक के ज्ञान, बोली और समझाने के तरीके पर प्रश्नचिन्ह तो लगाते ही हैं परन्तु उनकी क्षमता पर शक भी करते हैं.
- आज के ‘कॉलेज युग’ की सबसे प्रसिद्ध बात है क्लास बंक करना. गुरु शिष्य परंपरा में तो शिष्यों को गुरुकुल में ही रहना होता था. बंक करना तो तौबा तौबा. आज हम गुरु से दूर भागते हैं.
आलोचक यह भी कह सकते हैं कि आज के शिक्षक में पहले वाली बात नहीं रही. वह पक्षपात करते है और व्यवसायिक बन गए है और इसीलिए हम इन्हें शिक्षक कहते है, गुरु नहीं.