दुर्गा पूजा के लिए – देश भर में दुर्गा पूजा की तैयारियां जोरों शोरो से शुरू हो गई है, लेकिन इन तैयारियों में बीते तीन साल से आ रही एक रोक इस बार भी जारी रहा है।
कोलक्ता के रेड लाइट सैक्स वर्कर्स एरिया सोनागाछी के निवासियों ने दुर्गा पूजा के लिए आपने आंगन से मिट्टी देने से इस साल भी इंकार कर दिया है। सोनागाछी के निवासियों द्वारा यह निर्णय बीते तीन सालों से लगातार सुनाया जा रहा है, साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि यह निर्णय पूरे सोनागाछी निवासियों की सर्व सम्मति से लिया गया है।
बतां दे कि भारत में दूर्गा पूजा को लेकर यह मान्यता रही है कि दुर्गा पूजा के लिए सोनागाछी अथवा किसी अन्य वैश्यालय के आंगन से लाई गई मिट्टी से ही दुर्गा माता की मूर्ति बनाई जाती है और यह शुभ होता है।
आखिर किसने और क्यों किया मना
सोनागाछी के सेक्स वर्कर्स असोसिएशन दरबार समोनॉय कमिटी के मेंटर और वहां की सलाहकार सुश्री भारती डे ने इस निर्णय को लेकर कहा कि यह फैसला समाज की मुख्यधारा में सेक्स वर्कर्स की अस्वीकृति के विरोध में किया गया है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सेक्स वर्कर्स को ना तो मुख्यधारा से जुड़ने दिया जाता है और ना ही समाज में उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। समाज के इसी दृष्टिकोण को देखते हुए सेक्स वर्कर समाज के लोगों ने समाज के विरोध स्वरूप यह फैसला सुनाया था, और बीते तीन सालों से वह अपने फैसले पर कायम भी है।
क्या है दुर्गा पूजन में सोनागाछी की मिट्टी का राज
दुर्गा पूजन को लेकर यह माना जाता है कि इस अनुष्ठान के लिए दशा मृतिका यानि दस जगहों की मिट्टी के जरिए माता की मूर्ति बनाई जाती है। इन दस जगहों में वैश्यालय के अलावा, पहाड़ की चोटी, नदी के दोनों किनारों, बेल के सींगों, हाथी के दांत, सुअर की ऐंड़ी, किसी महल के मुख्य द्वार, दीमक के ढेर, किसी चौराहे और किसी बलिभूमि से मिट्टी इक्कठी कर माता की मूर्ति बनी जाती है।
बतां दे कि दुर्गा पूजन के दौरान कई दुकानों पर यह मिट्टी दशा मृतिका के नाम से मिलती है, लेकिन यह कहना कि इस मिट्टी में उन सभी दस जगहों की मिट्टी भी शामिल है ये बात बेहद संदेहपूर्ण है। इस पूजन के सभी विशेषज्ञों और मूर्ति बनाने वालों का कहना है कि दुर्गा पूजन के दौरान यह मान्यता है कि दुर्गा पूजन में रखी जाने वाली सभी मूर्तियों को बनाने के लिए किसी कोठे या तवायफ के घर की मिट्टी का इस्तेमाल करना दूर्गा पूजन की परंपरा का हिस्सा है। पहले इस कार्य के लिए मूर्ति बनाने वाले कारीगर सोनागाछी जैसी जगहों पर जा कर यह मिट्टी मांग कर ले आया करते थे, जिसे वहां रहने वाले लोग अपने गर्व और सम्मान के आकड़ों में गिनते थे। लेकिन वहीं दूसरी ओर बीतते वक्त के साथ अब इस परंपरा की जगह भी व्यापार ने ले ली है। अब किसी भा कोठे या तवायफ के द्वार से मिट्टी लाना एक व्यापार बन गया है अर्थात अब यह मिट्टी अपने मोलभाव के साथ दी जाती है। कहीं किसी कोठे पर इसकी कीमत 300 रूपये बोरी होती है, तो कहीं 500 रूपये बोरी आकी जाती है।
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