आजकल टाटा विवादों में है – लगता है आजकल टाटा के सितारे गर्दिश में चल रहे हैं.
टाटा ग्रुप एक के बाद एक न केवल विवादों में फंसता जा रहा है उसे बल्कि कानूनी कार्रवाई का सामना भी करना पड़ रहा है.
टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन सायरस मिस्त्री को लेकर हुआ विवाद अभी पूरी तरह से थमा भी नहीं था कि टाटा ग्रुप के फर्जी लेन-देन एक नया मामला सामने आ गया है. इसके पहले नीरा राडिया टेप्स में भी रतन टाटा विवादों में आने से भी टाटा ग्रुप की साख को धक्का लगा था. इसको लेकर आज भी टाटा को अदालती कार्रवाई का सामना करना पड़ रहा है.
अब आरोप है कि मलेशियाई कंपनी एयर एशिया और टाटा सन्स के जॉइंट वेंचर वाली कंपनी एयर एशिया इंडिया ने कंसल्टेंसी के लिए जो पैसा दिया है वह पैसा आतंकवादियों को मिला है.
आपको बता दें कि किसी समय नीरा राडिया भी टाटा के लिए कंसल्टेंसी का कार्य करती थी.
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) इस मामले से जुड़े फर्जी लेन-देन की जांच कर रहा है कि कहीं कंसल्टेंट को दी गई रकम से आतंकवादियों को फंडिंग तो नहीं हुई है. आपको बता दे कि आतंकवादियों को फंडिग करने को लेकर टाटा पर कोई पहली बार आरोप नहीं लगे हैं. इसके पहले असम में उल्फा को पैसा देने का आरोप भी टाटा ग्रुप पर लगा था.
दरअसल, मिस्त्री ने अक्टूबर में दावा किया था एयर एशिया के साथ टाटा ग्रुप के जॉइंट वेंचर में कॉर्पोरेट गवर्नेंस से जुड़ी गड़बड़ियां हुई हैं. उनका कहना था कि फॉरेंसिक जांच में भारत और सिंगापुर में गैर-मौजूद एंटिटीज से जुड़ी 22 करोड़ रुपये के फर्जी लेन-देन का खुलासा हुआ था.
मिस्त्री के दावे के बाद टाटा विवादों में में आया और ईडी ने मामले की छानबीन शुरू की तो ईडी को कुछ शक हुआ, क्योंकि टाटा के कंसल्टेंट का एक पार्टनर जो एक अन्य कंपनी में काम करता है उसको अमेरिका ने आतंकवादी घोषित किया है.
इसके अलावा ईडी टाटा द्वारा दी गई कंसल्टेंसी की दो ओर पहलुओं से भी जांच कर रही है. ईडी यह पता लगाने की कोशिश कर रहा है कि कंसल्टेंट को जो पैसा दिया गया क्या वह वाकई उसकी फी थी या फिर यह रकम सरकारी अफसरों को रिश्वत देने केलिए थी.
यही नहीं, क्या इस लेन-देन में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के नियमों का उल्लंघन हुआ है.
जानकारों की माने तो टाटा ग्रुप की मुश्किले बढ़ने वाली है यह तो उसी दिन तय हो गया था, जब रतन टाटा ने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की असहिष्णुता और आर्थिक नीतियों तथा हाल ही में नोटबंदी को लेकर आलोचना करनी शुरू की थी.
लोगों को लगने लगा था कि रतन टाटा विवादों में आ रहे है. टाटा व्यापार से हटकर जिस प्रकार विपक्षियों की भाषा बोल रहे हैं, उसका खामियाजा उन्हें व्यापार में उठाना पड़ सकता है क्योंकि आज के दौर में मुनाफे के लिए कानूनी खामियों का लाभ उठाने में कारपोरेट कंपनी का दामन पाक साफ नहीं बचा है.
नीरा राडिया टेप के जरिए पूरा देश यह सब जान ही चुका है.
यही वजह है कि लोगों को आंशका है कि यदि टाटा के हिसाब किताब में कुछ भी गलत पाया गया तो वे इस बार भी कानूनी लपेटे में आ सकते हैं.