आज हमारा देश विडम्बनाओं का देश बन गया है.
बातें करने के लिए यहाँ हजारों ही नहीं लाखों करोड़ों लोग मिल जायेंगे. एक छोटे से तिल का ताड़ बनाने में न्यूज़ चैनल से लेकर तथाकथित बुद्धिजीवी और फेसबुकिया क्रांतिकारी सब जोर शोर से लग जाते है.
अब कन्हैया को ही ले लीजिये.
किस तरह सब के सब ऐसे करने लगे जैसे बस अब तो क्रान्ति आ ही गयी. कुछ अतिउत्साही लोगों ने तो उसे भगत सिंह की भी उपमा दे दी. सब जगह से चर्चा बटोरने के बाद कन्हैया ने किया क्या ?? ना ही वो बंगाल पहुंचे पुल गिरने से मरे लोगों के परिजनों या घायलों से मिलने ना ही उनके मुंह से एक बोल फूटा इस बारे में.
कन्हैया ने आग उगली भी तो सिर्फ और सिर्फ केंद्र सरकार के लिए और जाकर बैठ गए राहुल गाँधी और अरविन्द केजरीवाल की गोद में अपना उल्लू सीधा करने के लिए.
निकम्मे लोगों को हीरो बनाने का चलन आजकल कुछ ज्यादा ही हो गया है और इसके साथ साथ उन लोगों को भुलाया जा रहा है जो सही में इस देश के लिए कुछ कर रहे है.
अभी हाल ही में एक दिल दहलाने वाली घटना में भारत की सबसे प्रमुख सुरक्षा एजेंसी NIA के उपनिरीक्षक तंज़ील अहमद की उत्तरप्रदेश में बेरहमी से हत्या कर दी गयी.
तंज़ील अहमद आतंकियों के लिए एक बहुत बड़ा खतरा थे.
देश के इस सच्चे सपूत ने उत्तर प्रदेश के जरिये पूरे भारत में फ़ैल रहे आतंकी संगठन SIMI और इंडियन मुजाहिद्दीन की जड़ें काटने में और यासीन भाटल जैसे आतंकी को पकड़वाने में बहुत बड़ा हाथ था.
इन दिनों तंज़ील अहमद पठानकोट आतंकी हमले की जांच में शामिल थे.
तीन दिन पहले आधी रात को एक विवाह समारोह से आते हुए पूर्वनियोजित तरीके से उनकी कार पर हमला किया गया. तंज़ील अहमद को एक या दो नहीं करीब 24 गोलियां मारी गयी, उनकी पत्नी को भी 4 गोलियां मारी गयी.
ये सब पहले से प्लान किया गया था. हत्यारे काफी समय से अहमद के आने का इंतज़ार कर रहे थे.
तंज़ील अहमद देश के सच्चे सपूत थे उनके लिए देश अपने धर्म और परिवार से बढ़कर था. लेकिन उनकी इस शहादत को किसी ने तवज्जो नहीं दी.
खासकर उन लोगों ने जो सेना और सुरक्षा एजेंसी में काम करने वाले लोगों को बलात्कारी, हत्यारा और ना जाने क्या क्या कहते है.
इन बुद्धिजीवियों और छद्म प्रगतिवादियों के नए नए मुखौटे बने कन्हैया कुमार भी असम और बंगाल की राजनीती में रोटी सकने में लगे रहे.
दादरी हो या रोहिथ वेमुला की आत्महत्या हर बात में सरकार को ज़िम्मेदार ठहराने वाले ये लोग उत्तरप्रदेश सरकार की इस विफलता पर एक शब्द नहीं बोले.
तंज़ील अहमद भी एक मुसलमान थे या यूँ कहे एक सच्चे मुसलमान थे लेकिन उनकी इस हत्या पर राजनीती की रोटी नहीं सकी जा सकती थी इसलिए कोई नेता नहीं पहुंचा उनके अंतिम संस्कार में.
आखिर SIMI और भटकल को खत्म करने वाले देशभक्त के जनाजे में ये घटिया राजनीती करने वाले जाते भी तो क्या मुंह लेकर?
वैसे आज के बुद्धिजीवी और क्रांतिकारियों से ये उम्मीद भी कैसे की जाए कि वो तंज़ील अहमद जैसे सिपाही की मौत पर आंसू बहाए ये तो वो लोग है जो अफज़ल गुरु, याकूब मेमन की फांसी को रुकवाने आधी रात को भी अदालत पहुँच जाते है और उन्हें शहीद बताने से भी नहीं चूकते.
तंज़ील अहमद आप सुर्ख़ियों में तब आते जब आप एक ऐसे मुसलमान होते जिसकी मौत पर राजनीति हो सकती लेकिन आप तो एक देशभक्त थे इसलिए आपको वो सुर्खियाँ और सम्मान नहीं मिला जिसके आप हकदार हो.
आशा करते है कि तंज़ील की हत्या करने वाले जल्द से जल्द ना सिर्फ गिरफ्तार हो बल्कि जल्दी ही अपने अंजाम तक पहुंचे.
देश के सच्चे मुसलमान सपूत तंज़ील अहमद को श्रद्धांजलि.