भारत एक ऐसा देश है जहाँ तंत्र-मंत्र और जादू टोना जैसी क्रियाएं होती रहती है…
इन क्रियाओं को करनेवाले तांत्रिक अपने सिद्धि के लिए किसी न किसी देवी-देवताओं की पूजा करते है और उनको खुश करते हैं.
और इन्ही तंत्र विद्या को सिद्ध करने के लिए तांत्रिक अनेकों मंदिर का भी प्रयोग करते है. इन मंदिरों में तांत्रिक क्रियाओं के साथ साथ लोगों की समस्याओं का समाधान भी होता है.
आइये जानते हैं कौन-से हैं ऐसे मंदिर, जहाँ इस तरह की तंत्र क्रियाओं को अंजाम दीया जाता है और जिनको तंत्र विद्या का गढ़ समझा जाता है.
1. कामाख्या मंदिर
असम का कामाख्या मंदिर तांत्रिक गतिविधियों का गढ़ माना जाता है.
यह मंदिर कई बार टुटा और बना है. आखरी बार इसे 16 वीं सदी में नष्ट किया गया था जिसका पुनः निर्माण 17 वी सदी में राजा नर नारायण द्वारा किया गया.
यह मंदिर 52 शक्तिपीठ में से एक माना जाता है.
कहा जाता है कि सती के आत्म दहन के बाद जब भगवान् शिव सती की मृत शरीर को लेकर संहारक नृत्य किया था तब सती का 52वा भाग यहाँ गिरा था. इसलिए इसको 52 शक्तिपीठ कहा गया. और यहाँ कामाख्या मंदिर का निर्माण हुआ.
इस मंदिर को तंत्र सिद्धि के लिए सबसे श्रेठ माना जाता है. यहाँ अपनी तंत्र को सिद्ध करने के लिए हर तांत्रिक को एक बार आना ही पड़ता है.
2. ज्वाला मंदिर
यह मंदिर हिमाचल प्रदेश में है, कांगड़ा में स्थित यह मंदिर अपने चमत्कार के साथ यहां होने वाली तांत्रिक क्रियाओं के लिए भी प्रसिद्ध है.
इस मंदिर को नगरकोट भी कहा जाता है.
माना जाता है कि इस मंदिर की खोज पांडव ने की थी. यहाँ माता सती की जीभ गिरने की बात कही जाती है.
इस मंदिर की खास बात यहाँ है की इस मंदिर में देवी की मूर्ति रूप में नहीं बल्कि जमीं से गुफा के बीच ज्वाला के रूप में निकली है और उस ज्वाला की पूजा की जाती है.
ज्वाला देवी के नाम से जलने वाली ज्वालाज्योत निरंतर कई युगों से जल रही है.
माना जाता है कि अकबर का सर माता ज्वाला के आगे निरंतर झुका था और उन्हों ने माता ज्वाला की निरंतर पूजा की थी.
यहां एक कुण्ड है, जो देखने पर उबलता दिखाई देता है लेकिन छूने पर पानी ठंडा रहता है.
3. बैजनाथ मंदिर
यह मंदिर भी हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में ही स्थित है. इस मंदिर में शिव भगवान का प्रसिद्ध वैधनाथ लिंग है.
कहा जाता है की त्रेता युग में रावण ने शिव पूजा कर अपने सर काट कर चढ़ाया था और शिव से जो दो शिव लिंग पूजा के लिये माँगा था उसमें से एक शिव लिंग जो बैजू नमक एक ग्वाले ने जमीं पर रखा था. यह वही शिवलिंग माना जाता है
बैजनाथ मंदिर अपनी तांत्रिक क्रियाओं और यहां का पानी अपनी पाचन शक्तियों के लिए प्रसिद्ध है.
4. काल भैरव मंदिर,
यह मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है.
इस मंदिर में काल भैरव की श्याम्मुखी मूर्ति है जिसकी पूजा की जाती है. तांत्रिक क्रियाओं के लिए ये मंदिर बहुत प्रसिद्ध है. देशभर से तांत्रिक और अघोरी सिद्धियों के लिए यहां आते है.
यहाँ रखे काल भैरव की मूर्ति पर सिर्फ शराब ही चढ़ाया जाता है.
काल भैरव की मूर्ति के मुंह में शराब का प्याला लगाने से प्याला अपने आप खाली हो जाता है.
इस मंदिर में प्रसाद भी शराब का ही दिया जाता है.
5. विक्रांत भैरव मंदिर,
विक्रम बेताल के कहानी इसी जगह की है. बेताल जिस पेड़ पर बैठते थे उसके सामने ही विक्रांत भैरव मंदिर है.
कहा जाता है कि बेताल बाबा रोज़ यहाँ पेड़ पर आकर लटक जाते थे. पेड़ की सही देख भाल न होने से वह पेड़ सुख कर ख़त्म हो चुका है. लेकिन उस जगह की पहचान के लिए वहां पर एक टीला बना दिया है, जिससे उस जगह को पहचाना जा सके.
विक्रांत भैरव मंदिर और नदी पार ओखलेश्वर श्मशान व आसपास का क्षेत्र आज भी तंत्र क्रियाओं के लिए जाना जाता है.
क्षेत्रीय लोग अकसर टीले पर बने ओटले का पूजन करते हैं.
6. खजुराहो मंदिर
मध्य प्रदेश में छत्तरपुर जिले में स्थित खजुराहो मंदिर जो तंत्र से ज्यादा कामुक मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है.
खजुराहो, भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की एक नायाब मिसाल है. खजुराहो को इसके अलंकृत मंदिरों की वजह से जाना जाता है जो कि देश के सर्वोत्कृष्ठ मध्यकालीन स्मारक हैं.
चंदेल शासकों ने इन मंदिरों की शुरुआत सन् 900 से 1130 ईसवी के बीच करवाई थी.
यहाँ की तंत्र सिद्धि की बात बहुत कम ही लोग जानते है कि खजुराहो तांत्रिक गतिविधियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है.
7. सलासर बालाजी मंदिर
राजस्थान के दौसा जिले में मेहंदी नामक स्थान में यह बालाजी का मंदिर है, जो हज़ारों साल पुराना है. दो पहाड़ियों के बीच बसा यह मंदिर तंत्र की नजर से बहुत पवित्र माना जाता है.
कहते है कि जिन लोगो पर प्रेत या आत्मा का साया पड़ जाता है वो यहां झाड़-फूंक के लिए आते है.
यहाँ एक चट्टान पर हनुमान की आकृति बनी हुई है, जो माना जाता है कि स्वयं से उभरी है.
बालाजी को हनुमानजी का ही स्वरूप माना जाता है. इस मंदिर के मूर्ति के चरणों में एक छोटी सी कुण्डी है, जिसका जल कभी समाप्त नहीं होता.
8. श्री एकलिंग मंदिर
यह मंदिर भी राजस्थान में ही है. उदयपुर में कैलाशपुरी गांव में भगवान शिव को समर्पित एकलिंग जी मंदिर है.
माना जाता है कि एकलिंगजी ही मेवाड़ के शासक थे. राजा तो उनके प्रतिनिधि के रुप में यहां शासन करता था. यहां शिव की एक अनोखी और बेहद खूबसूरत चौमुखी मूर्ति है जो काले संगमरमर से बनी है.
यह मंदिर अपनी खुबसूरत मूर्ति के अलावा तांत्रिक क्रियाँओं के लिए जाना जाता है.
9. कालीघाट
देवी काली का प्रसिद्ध मंदिर पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर के कालीघाट में स्थित है.
कालीघाट चित्रकला की शुरुआत लगभग १९वीं सदी में इस मंदिर से हुई है.
इसको 51 शक्तिपीठ माना जाता है. मान्यताओं के अनुसार इस जगह पर देवी सती की उंगलियां गिरी थी.
कोलकाता से 180 किलोमीटर दूर स्थित तारापुर पीठ की खासियत यहाँ का महाश्मशान है. यह स्थान मंदिर से थोड़ा हटकर बिलकांदी गाँव में ब्रह्माक्षी नदी के किनारे पड़ता है. यहाँ के महाश्मशान में वामा खेपा और उनके शिष्य तारा खेपा नाम के दो कापालिकों की साधनाभूमि होने के चलते तारापीठ को सिद्धपीठ के तौर पर प्रसिद्धि मिली है. कहते हैं कि वामा खेपा यहाँ माँ तारा को अपने हाथों से भोग खिलाते थे.
कोलकाता का कालीघाट तांत्रिकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण तीर्थ है.
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