जैसलमेर से 130 किलोमीटर दूर भारत-पाकिस्तान की बॉर्डर के पास तनोट माता का मंदिर आज से 1200 साल पहले स्थापित किया गया था।
इस मंदिर पर पहले से ही काफी लोगों की आस्था जुड़ी हुई थी लेकिन 1965 में हुई भारत-पाकिस्तान की लड़ाई के बाद इस मंदिर को देश-विदेश से और भी प्रतिष्ठा मिलने लग गई।
इसका कारण लड़ाई के समय पाकिस्तान द्वारा गिराए गए 3000 बम थे जो कि मंदिर पर एक खरोंच तक नही ला सके।
यहां तक कि तनोट माता का मंदिर जिसमें गिरे 450 बम तो फटे तक नहीं थे और आज भी मंदिर में बने एक संग्रहालय में भक्तों के दर्शन के लिए वो बम रखे हुए हैं।
आवड़ माता, तनोट माता का ही दूसरा नाम है और यह हिंगलाज माता का ही एक रूप हैं। हिंगलाज माता का शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित है, जहां हर साल आश्विन और चैत्र नवरात्र में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
काफी समय पहले मामडिया नाम के एक चारण थे। चारण की कोई संतान ना होने के कारण उन्होंने हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार यात्रा की जिसके बाद माता रानी, चारण के स्वप्न में आईं और उसकी इच्छा पूछी। तब चारण ने कहा कि आप मेरे यहां पुत्री के रूप में जन्म लें। माता की कृपा से चारण के 7 पुत्रियों व एक पुत्र ने जन्म लिया। उन्हीं सात पुत्रियों में से आवड़ माता ने विक्रम संवत 808 में चारण के यहां जन्म लिया। इसके अलावा सभी पुत्रियो में दैवीय शक्तियां थी जिनसे उन्होंने हूणा के आक्रमण से माड़ प्रदेश की रक्षा की और माड़ प्रदेश में राजपूतों का स्थित राज्य स्थापित करवाया। राजा तणुराव भाटी ने माडा को अपने राज्य की राजधानी बनाया और अवाड़ माता को स्वर्ण सिन्हासन भेंट किया। आवड़ माता ने 828 ईस्वी में अपने भौतिक शरीर के रहते हुए यहां अपनी स्थापना की।
इस प्रकार यह तनोट माता का मंदिर चमत्कारिक मंदिर अपनी ऐतिहासिकता के लिए भी मशूहूर हो गया।
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