भारत में साहस और शौर्य की कहानियों की वैसे कमी नहीं है.
आप एक कहानी को खोजने की कोशिश करेंगे तो आपको एक नहीं बल्कि हजारों कहानियां मिल जायेंगी.
सबसे बड़ी बात यह है कि यह कहानियां भी ऐसी-वैसी नहीं होगी बल्कि ऐसे शौर्य की यह कहानियां होती हैं कि पढ़कर मरता इंसान भी जीवित हो सकता है.
आज हम आपको एक ऐसे ही वीर और बहादुर योद्धा तानाजी मालुसरे की कहानी बताने वाले हैं. वैसे महाराष्ट्र के लोग तो इस नाम से वाकिफ होंगे किन्तु इस नाम से पूरे भारत को वाकिफ होना चाहिए.
तो आइये पढ़ते हैं वीर तानाजी मालुसरे की पूरी कहानी और इतना तो निश्चित है कि इस कहानी को पढ़ने के बाद आप इसे शेयर जरूर करेंगे-
कौन थे तानाजी मालुसरे ?
तानाजी मालुसरे, शिवाजी महाराज के एक दम ख़ास आदमी थे. शिवाजी महाराज भी इनके शौर्य से अच्छी तरह से वाकिफ थे. शिवाजी जानते थे कि जो काम कोई भी नहीं कर सकता है वह काम बस तानाजी मालुसरे कर सकते हैं. एक बार शिवाजी महाराज जी कोंढाणा किला को जीतना चाहते थे. किन्तु इस काम के लिए कोई भी बहादुर नाम शिवाजी जी को नजर नहीं आ रहा था. तब शिवाजी के पास एक ही चारा था कि वह अपने सबसे ख़ास योद्धा तानाजी मालुसरे को यह कार्य सौपें.
तब तानाजी मालुसरे कहाँ व्यस्त थे?
जब शिवाजी महाराज का सन्देश तानाजी मालुसरे को पंहुचा तो वह अपनी बेटी की शादी में व्यस्त थे. इतिहास की किताबें बताती हैं कि वह रात इनकी बेटी की शादी की रात थी. किन्तु तभी शिवाजी का सन्देश तानाजी मालुसरे तक आया कि इनको महाराज ने याद किया है. तानाजी मालुसरे समझ गये कि अगर मुझे इस रात को महाराज ने बुलाया है तो निश्चित रूप से कोई जरुरी काम ही होगा. तानाजी तभी अपना सारा काम अपने परिवार वालों को सौपतें हैं और जल्द से जल्द शिवाजी महाराज के सामने हाजिर होते हैं.
शिवाजी महाराज का आदेश था –
जब तानाजी मालुसरे हाजिर हुए तो शिवाजी महाराज ने भी आज बुलाने की गलती मानी और इनको बताया कि अब कोंढाणा किला को मुगलों से खाली कराना इज्जत की बात हो गयी है. इस तरह से अगर हम इस किले को वापिस नहीं पाते हैं तो जग हम हँसेगा कि देखो हिंदुत्व अपना घर भी अब अपने कब्जे में नहीं रख सकते हैं. जब तानाजी ने यह सुना तो इन्होने कसम खाई कि अब ये किला मुगलों से आजाद कराना ही इनका उद्देश्य है. अपनी आखरी सांस से शरीर से खत्म होने से पहले मुगलों से यह किला खाली करा लिया जायेगा.
तब निकले अपने शौर्य का परिचय देने के लिए –
तानाजी कुछ 1000 लोगों की सेना रात को लेकर ही किले की तरफ बढ़ गये थे. इनकी योजना थी कि रात को ही किले के ऊपर चढ़ लिया जाये और जब सब सो रहे हैं थी सभी को मारना शुरू कर दिया जाये. जब तक ये लोग कुछ समझे तब तक हम काफी लोगों को मार चुके होंगे. किले की दिवार पर से ऊपर चढ़ना शुरू किया गया, किन्तु जब तानाजी के 300 लोग ही ऊपर चढ़े होंगे कि तभी मुग़ल पहरेदार जाग जाते हैं.
युद्ध की शुरुआत होती है –
अभी भी तानाजी के कुछ 700 लोग नीचे थे किन्तु तानाजी ने इसकी परवाह किये बिना ही, अपने योधाओं के साथ युद्ध प्रारंभ कर देते हैं. इतिहास के जानकार बताते हैं कि यह युद्ध काफी भयंकर हुआ था लेकिन हिंदुत्व और शिवाजी महाराज की इज्जत की खातिर एक-एक योद्धा सौ-सौ लोगों के शौर्य के बराबर लड़ रहा था.
इस युद्ध के बीच में ही तानाजी काफी घायल हो गये थे लेकिन फिर भी तानाजी ने अपने सैनिकों का मनोबल कम नहीं होने दिया था. मुग़ल सरदार की हत्या जैसे ही की, तभी मुग़ल सेना में भगदड़ मच जाती है. तानाजी अपनी आखरी सांसे गिन रहे थे लेकिन मरने से पहले वह यह देख रहे कि उन्होंने किले को खाली कराकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दी है.
अब आप ही बतायें कि इस वीर योद्धा की कहानी से क्या, भारत का बच्चा-बच्चा वाकिफ नहीं होना चाहिए क्या?
एक योधा जो भारत माता की आन-बान-शान के लिए लड़ा और जिसने बड़ी वीरता से हिंदुत्व की रक्षा की थी. किन्तु आज तानाजी मालुसरे को कुछ चुनिन्दा लोग ही जानते हैं और यह भारत के लिए बड़े शर्म की बात है.
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