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अकबर से लेकर शाहजहाँ तक मुगलकाल में कुछ ऐसे थे तलाक के नियम

तलाक के नियम

तलाक के नियम – हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम धर्म में तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाया है।

अब तो मुस्लिम पुरुष अपनी पत्‍नी को तीन बार तलाक बोलकर नहीं छोड़ सकते हैं लेकिन क्‍या मुगलकाल में भी महिलाओं के शोषण के लिए ऐसे ही तरीके अपनाए जाते थे?

आइए जानते हैं कि शाहजहां और अकबर के ज़माने में मुगलकाल में तलाक को लेकर कैसे नियम-कानून बनाए गए थे।

जहांगीर ने भी लगाई थी रोक

20 जून, 1611 को जहांगीर ने बेगम की गैर जानकारी में शौहर द्वारा तलाक दिए जाने पर रोक लगा दी थी। उस दौर में पत्‍नी द्वारा खुला या तलाक का भी चलन था।

उस दौर में महिलाएं थीं ज्‍यादा सशक्‍त

साल 1614 में एक खानसामा की पत्‍नी ने अपने पति को काज़ी के सामने पेश कर ये बात कबूल करवाने को मजबूर कर दिया था कि अगर अब उसने शराब पी तो वो उससे तलाक ले लेगी और उसके पति के सारे अधिकार जाते रहेंगें।

तलाक के नियम

उस दौर में तलाक के नियम बनाए गए थे जो इस प्रकार थे –

– मौजूदा बीवी के रहते हुए शौहर दूसरा निकाह नहीं कर सकता था।

– बीवी पर शारीरिक अत्‍याचार नहीं करेगा।

– बीवी से लंबे समय तक शौहर दूर नहीं रहेगा और उसके गुज़र-बसर के पैसों का इंतज़ाम करेगा।

– शौहर पत्‍नी के रूप में किसी महिला को अपनी दासी नहीं बना सकता है।

शाही परिवार में थे ये अधिकार

शाहजहां के प्रधानमंत्री आसिफ खान की बेटी मिसरी बेगम की एक अधिकारी मिर्जा जरुल्‍लाह से शादी हुई थी। किसी कारण बादशाह जरुल्‍लाह ने नाराज़ होकर मिसरी बेगम से तलाक का फैसला किया और उनकी दूसरी शादी एक अन्‍य अधिकारी ये कराने का आदेश दे दिया। इस पूरी प्रक्रिया में तीन तलाक से भी कम समय लगा था।

तलाक के नियम – वैसे देखा जाए तो आज की तुलना में मुगलकाल में महिलाएं ज्‍यादा सशक्‍त थीं और उनके बादशाह महिलाओं के हक के लिए फैसला लेने भी नहीं कतराते थे।