ताजमहल के कागजात – किसी भी देश की ऐतिहासिक इमारतें उस देश के इतिहास को बयां करने का जरिया होती है, जो बिना अल्फाजों के भी इतिहास को लोगों के बीच जिंदा रखती है ।
लेकिन अब कुछ लोग ऐतिहासिक इमारतों पर हक जताने लगे है । और उसे धर्मों से जोड़ने लगे है । लेकिन जिसने बनाया और जिसके लिए बनाया जब वो ही इस दुनिया में नहीं है तो उनकी बनाई इमारत पर कोई केवल धर्म के नाम पर कैसे हक जता सकता है ?
और धरोहर किसी धर्म या जाति की नहीं होती बल्कि उस देश में रहने वाले हर नागरिक की होती है।
लेकिन ये बात शायद सुन्नी वक्फ बोर्ड के समझ से बाहर थी । इसलिए शायद सुन्नी वक्फ बोर्ड आजतक ताजमहल को अपन संपत्ति घोषित करते आई । लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड साफ निर्देश दे दिए है कि अगर वो ताजमहल पर अपना हक जताना चाहती है तो पहले शाहजहां दारा साइन किए हुए ताजमहल के कागजात कोर्ट में पेश करें । ताकि ये साबित हो सकें कि शाहजहां मरने से पहले ताजमहल सुन्नी वक्फ बोर्ड को सौंप कर गए थे ।
दरअसल ताजमहल पर मालिकाना हक जताने का ये मामला नया नहीं है ।
ये मामला 2005 से चला आ रहा है । जब सुन्नी वक्फ बोर्ड ने ये घोषित किया था कि ताजमहल सुन्नी वक्फ बोर्ड की संपत्ति है । बोर्ड के इस फैसले को ASI ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी । जिसके बाद कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड को खूब फटकार लगाई ।और कहा कि “इस के मामलों से कोर्ट का वक्त बर्बाद न किया जाए । “ बोर्ड को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ” देश में ये कौन विश्वास करेगा कि ताजमहल सुन्नी वक्फ बोर्ड की संपत्ति है । इस तरह के मामलों से कोर्ट वक्त जाया न किया जाए ।”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “मुगलों के अंत के साथ ही देश की सभी धरोहरों को ब्रिटिश ने अपने अंडर ले लिया था। जो आजादी के बाद से भारत सरकार के पास है । भारतीय ऐताहिसक धरोहरों की देखभाल ASI करते है ।”
लेकिन सुन्नी वक्फ बोर्ड इतनी फटकार के बाद भी अपनी जिद्द पर अड़ा था । बोर्ड ने अपनी दलील में कहा कि शाहजहां ने खुद हलफनामा तैयार कर ताजमहल को उन्हें सौंपा था । जिस पर कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसा है तो शहाजहां के साइन किए हुए ताजमहल के कागजात सुन्नी बोर्ड पेश करें । इसके लिए कोर्ट ने बोर्ड को एक हफ्ते की मोहल्लत दी है ।
बोर्ड के आग्रह पर सबूत पेश करने के लिए कोर्ट ने एक हफ्ते की मोहलत दे दी।
आपको बता दें ये विवाद उस वक्त शुरु हुआ जब सुन्नी बोर्ड ने ताजमहल को अपनी संपत्ति के तौर पर रजिस्टर करने की कोशिश की । जिस पर एएसआई ने इस मामले की शिकायत याचिका दायर सुप्रीम कोर्ट में की । दरअसल 1998 में मोहम्मद इरफान बेदार ने वक्फ बोर्ड के समक्ष याचिका रखी थी कि ताजमहल को बोर्ड की संपत्ति घोषित किया जाए । जिस पर जब एएसआई से जवाब मांगा ।तो उसने इस बात का कड़ा विरोध किया लेकिन एएसआई के विरोध के बावजूद भी बोर्ड ताजमहल को अपनी संपत्ति घोषित कर दिया । जिस वजह ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया ।
ताजमहल के कागजात – बहुत अजीब बात है कि देश में कहीं लोग धर्म के नाम पर बंट रहे है कही जाति के नाम पर और इस बीच अब ऐताहिसक धरोहरों के भी धर्म ढूँढ कर अपनी – अपनी संपत्ति घोषित करने की तैयार की जा रही है ।
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