जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला, कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ, जो किया, कहा, माना उसमें क्या…
सत्यजीत रे की फिल्में नहीं देखने का मतलब है आपने जीवित रहकर भी सूरज-चांद के अस्तित्व को महसूस नहीं किया.…