अजमेर दरगाह में 2007 में हुए विस्फोट मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने मुख्य आरोपी स्वामी असीमानंद को बरी कर दिया.
बरी होने के बाद संभावना है कि स्वामी असीमानंद अपने ऊपर लगे इन आरोपों को लेकर कई बड़े और चौकाने वाले खुलासे करे.
आप को बता दें कि स्वामी असीमानंद को अजमेर, हैदराबाद और समझौता एक्स्प्रेस विस्फोट मामलों में 19 नवंबर 2010 को उत्तराखंड के हरिद्वार से गिरफ्तार किया गया था. उसके बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने जिस प्रकार असीमानंद के जरिए संघ को घेरने की जो रणनीति बनाई उसके राज असीमानंद के पास ही है.
आपको बता दें कि साल 2011 में उन्होंने मजिस्ट्रेट को दिए इकबालिया बयान में कहा था कि अजमेर की दरगाह, हैदराबाद की मक्का मस्जिद और अन्य कई स्थानों पर हुए बम विस्फोटों में उनका और दूसरे हिंदूओं का हाथ था.
लेकिन उनका ये इकबालिया बयान ही सवालों के घेरे में आ गया और केंद्र की यूपीए सरकार ही कठघरे में खड़ी हो गई. आखिर कैसे स्वामी असीमानंद का बेहद गोपनीय कथित इकबालिया बयान एक मीडिया ग्रुप के हाथ में आया. जबकि वो तो बेहद गोपनीय था. दूसरा स्वामी असीमानंद शुरू से ही इस बयान को डिस्ओन करते रहें है.
आपको बता दें कि असीमानंद को साध्वी प्रज्ञा का करीबी माना जाता है, जिनका नाम मालेगाँव धमाके में आया था. प्रज्ञा पर सुनील जोशी की हत्या का भी आरोप था जिसमें अदालत ने उन्हें इसी साल 1 फरवरी को बरी कर दिया.
अनुमान है कि जैसे ही असीमानंद जेल से बाहर आएंगे तो उस दौरान वो उस सच्चाई से पर्दा उठा सकते हैं जो उनके खिलाफ रची गई थी. ज्ञात हो कि स्वामी असीमानंद के संघ और भाजपा के बड़े नेताओं से काफी नजदीकी संबंध रहे है.
गौरतलब है कि असीमानंद मूलत पश्चिम बंगाल के हुगली के रहने वाले हैं और स्वामी बनने से पहले उनका नाम नब कुमार था.
वो 1990 से 2007के बीच राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ी संस्था वनवासी कल्याण आश्रम के प्रांत प्रचारक प्रमुख रहे.