किराये की कोख – आज सांइस ने इतनी तरक्की की ली है, कि अगर मां अपनी कोख से बच्चें को जन्म नहीं दे सकती…. तो क्या हुआ?… वह अपने ही बच्चे को किसी दूसरे की कोख से तो जन्म दे सकती है।
आज ममता किसी बीमारी या किसी कमी की रोक से थमती नहीं है।
विज्ञान आज उन माताओं के लिए भगवान बन चुका है, जो खुद बच्चों को जन्म नहीं दे सकती। एक दौर था जब विज्ञान के पास सिर्फ लोगों को मारने और उनकी जान बचाने के ही साधन थे। लेकिन आज यही विज्ञान एक ऐसी सीढ़ी चढ़ चुका जहां वह एक नई जिंदगी को भी जन्म देने का जरिया बन चुका है।
क्या है उधार की कोख – किराये की कोख
किराये की कोख – उधार की कोख का अर्थ है एक महिला जब अपने बच्चे को जन्म नहीं दे पाती, लेकिन वो अपने ही बच्चें का पालन करना चाहती है। ऐसे हालातों में एक दूसरी महिला जो अपनी कोख के अंदर उस जोड़े के (जीवाशम) सपनों यानि उनके बच्चें को 9 महीने तक रखती है और 9 महीनें बाद बिना किसी रोक-टोक के उन्हें उनका बच्चा सौप देती है।
इस दौरान शायद वह थोड़ा असहज और मार्मिक फील जरूर करती होगी कि जिस बच्चें को उसने 9 महीनें अपने अंदर पाला है, वो चंद घंटो या दिनों के भीतर उससे दूर चला जाता है।
जानिये कितने प्रकार की होती है सेरोग्रेसी
ट्रेडिशनल सेरोगेसी एक ऐसी प्रकिया है जिसमें एक दपंति में से पिता के शुक्राणुओं को एक स्वस्थ महिला के अंडाणुओं के साथ प्रकृतिक तौर पर निषेचित किया जाता है। इस प्रकिया के बाद शुक्राणुओं को सरोगेट मदर के नेचुरल ओव्युलेशन के दौरान डाला जाता है। इस प्रकिया में बच्चें का अपने पिता से जेनेटिक संबध होता है।
इस प्रकिया के दौरान माता-पिता के अंडाणु व शुक्राणुओं का मेल परखनली विधी से करवा कर भ्रूण को सरोगेट मदर की बच्चेदानी में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इसमें प्रक्रिया में बच्चे का जेनेटिक संबंध मा और पिता दोनों से होता है। विज्ञान की इस प्रकिया में सरोगेट मदर को ओरल पिल्स खिलाकर विहिन चक्र में रखा जाता है, जिससे जिसके कारण बच्चा पैदा होने तक अंडाश्य नही बनता है।
कहां से आती है ये सेरोगेट मदर्स – किराये की कोख
आज भी इस काम को लेकर लोगों के मन में कई सवाल रहते है, जिसके कारण आज भी लोग इसे गलत ही ठहराते है। जब भी किसी सेरोगेट मदर के बारें में वहां के आस-पास के लोगों को पता चलता है वह उस महिला को बड़ी अजीबों-गरीब नजरों से देखते है। कई बार तो उन्हें चर्चा का विषय ही बना देते है।
ये वो महिलायें होती है, जिन्हें अपने और अपने परिवार के जीवन-यापन के लिए रूपयों की जरूरत होती है और जिन माता-पिता के बच्चों को यह जन्म देती है वह इन्हें इनके इस काम के लिए एक बड़ी रकम देते है। 9 महीनें के इस काल के दौरान मां के खान-पान व उसके इलाज का पूरा खर्च बच्चे के जेनेटिक माता-पिता ही उठाते है।
किराये की कोख – सेरोगेसी कोई बिजनस या धंधा नहीं है, बल्कि यह सांइस की वह अनमोल देन है, जिसके माध्यम से किसी कमी के कारण माता पिता ना बन सकने वाले कपल्स को अपनी ही जेनेटिक संतान का सुख मिलता है। आज सेरोगेसी यानि उधार की कोख एक ऐसी पद्धति है, जिसके माध्यम से हजारों-करोड़ो लोगों को खुशी मिलती है।
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