सूर्य का जन्म – सूरज की किरणें धरती पर आती हैं और उजाला फैलाती हैं। ये किरणें ही हैं जो धरती पर जीवन का स्त्रोत है और जीवन की रूपरेखा निर्धारित करती हैं।
सूरज की किरणों के बिना किसी भी मनुष्य, जीव-जन्तु या पौधों के लिए जीवन असम्भव है या यूं कहा जाएं कि जीवन की कल्पना भी असम्भव है। पौधे जिस प्रोसेस की वजह से ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं उसके लिए भी सूरज का प्रकाश बहुत ज़रूरी है।
यहां तक कि अगर धार्मिक मान्यताओं के आधार पर भी बात की जाएं तो ऐसा माना जाता है कि सूर्य देवता को रोजाना जल चढ़ाने से व्यक्ति के सभी रोग और द्वेष दूर होते हैं औऱ वो निरोगी और दीर्घायु होते हैं। ऐसा माना जाता है कि सारे जगत का निर्माण करने वाले ब्रह्माजी ने ही सूर्य की भी रचना की थी।
पूरी कथा कुछ इस प्रकार है कि सृष्टि का जब प्रारम्भ हुआ था तब ब्रह्मा जी के मुख से सबसे पहले ऊं शब्द की उत्पत्ति हुई थी, इस शब्द के प्रकट होने के बाद ही सूर्य का जन्म हुआ, ये सूर्य का शुरूआती स्वरूप था जो कि काफी सूक्ष्म था। बाद में भू: भुव और स्व शब्द उत्पन्न हुए। ये तीनों पिंड के रूप में ऊं में विलीन हुए और उसके बाद सूर्य के वास्तविक औऱ ज्वलंत स्वरूप की उत्पत्ति हुई।
अगर एक और पौराणिक कथा की माने तो सृष्टि की उत्पत्ति के लिए ब्रह्मा जी ने अपने दाएं अंगूठे से दक्ष और बाएं अंगूठे से उनकी पत्नी को उत्पन्न किया। इसके बाद दक्ष की 13 पुत्रियां हुई, उनकी तेरहवी कन्या का विवाह ब्रह्मा जी के पुत्र मारीचि से हुआ जिसे सप्त ऋषि में एक कश्यप ऋषि उत्पन्न हुए।
कश्यप और अदिति के जो पुत्र हुए वो देवता कहलाए और वही कश्यप ऋषि की दूसरी पत्वी दिति से हुए पुत्र दानव कहलाए। जैसा कि पौराणिक कथाओं से ज्ञात ही है कि दानव और देवता हमेशा लड़ते रहे।
दैत्य और दानवों के बीच कईं युध्दों का जिक्र पौराणिक कथाओं में मिल ही जाता है, ऐसी ही एक कथा में वर्णन है कि देवता एक बार युध्द में दानवों से हार गए थे और इसके बाद देवताओं की माता अदिति चिंता से घिरी रहने लगी, अपनी संतानों की सफलता, समृध्दि और उनके संरक्षण के लिए उन्होने सूर्यदेव की उपासना करना शुरू किया।
उनकी तपस्या से सूर्यदेव प्रसन्न हुए और उन्हे आशीर्वाद दिया कि वो उनके गर्भ से जल्द ही जन्म लेंगे। इसके कुछ वक्त बाद ही ये वरदान सच साबित हुआ और अदिति ने गर्भधारण किया। गर्भावस्था के दौरान भी वो कड़े उपवास रखती थी जिसकी वजह से उनकी सेहत खराब रहने लगी थी। अपने पति के समझाने पर भी उन्होने व्रत करना नहीं छोड़ा, वो हमेशा कहा करती थी कि उनका होने वाला पुत्र तो सूर्य का अंश है उसे कुछ भी नहीं होगा।
ये बात सच भी साबित हुई और अदिति के गर्भ से मर्तण्ड ने जन्म लिया, मर्तण्ड सूर्य का ही एक नाम है। इसके बाद ये देवताओं के नायक बने और असुरों से देवताओं की रक्षा की।
अदिति के गर्भ से जन्म लेने के कारण ही सूर्य देव को आदित्य के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सूर्यदेव की रोशनी पहली बार पृथ्वी पर पड़ी।
इस तरह से सूर्य का जन्म हुआ – ये जानकारी आपको बहुत ही रोचक लगी होगी इसमें तो कोई दोराय नहीं है, इस दिलचस्प जानकारी को अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें।
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