श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र – देवों के देव महादेव की नगर काशी को हिंदू धर्म में आस्था का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है.
मान्यता है कि इस पावन नगरी को स्वयं भगवान शिव ने बनाया था और यह नगरी भगवान शिव के त्रिशूल पर थमी हुई है.
भगवान शिव इस नगरी में काशी विश्वनाथ के रुप में आज भी विराजमान है जिनके दर्शन के लिए देश और दुनिया से भक्त खींचे चले आते हैं. लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भगवान शिव की इस नगरी को एक बार भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से जलाकर राख कर दिया था.
आखिर श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र जिससे इस नगरी को जलाकर भस्म क्यों कर दिया, इसके पीछे द्वापर युग की एक कथा बेहद प्रचलित है.
श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र –
जरासंध ने अपनी बेटियों की शादी कराई थी कंस से
पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में मगध पर राजा जरासंध का राज हुआ करता था उनके आतंक के चलते उनकी पूरी प्रजा डर के साये में जीने को मजबूर थी. राजा जरासंध की क्रूरता और उसकी विशाल सेना से आसपास के ज्यादातर राजा खौफ खाते थे. यही वजह है कि जरासंध ने अपनी दोनों बेटियों अस्थि और प्रस्थि का विवाह मथुरा के दुष्ट राजा और श्रीकृष्ण के मामा कंस से करा दी.
विष्णु अवतार श्रीकृष्ण के मामा थे कंस
पौराणिक कथा के अनुसार राजा कंस को ये श्राप मिला था कि उसकी बहन देवकी की आठवीं संतान ही कंस की मौत का कारण बनेगी. जैसे ही कंस को इसका पता चला उसने अपनी बहन देवकी और उसके पति वासुदेव को बंदी बनाकर रखा. कंस ने अपनी बहन के सभी संतानों का वध कर दिया लेकिन उनकी आठवीं संतान को जीवित रहने से कोई नहीं रोक पाया. कृष्ण के जन्म के तुरंत बाद अपनी संतान को कंस से बचाने के लिए वासुदेव ने उसे यशोदा के घर में छोड़ा, जिसके बाद माता यशोदा ने ही श्रीकृष्ण का पालन पोषण किया.
श्रीकृष्ण ने किया था अपने मामा कंस का वध
जब श्रीकृष्णा बड़े हुए तो वही अपने मामा की मौत का कारण बनें. श्रीकृष्ण द्वारा कंस की हत्या किए जाने की खबर जब मगध के राजा जरासंध को मिली तो क्रोध में आकर उन्होंने श्रीकृष्ण को मारने की योजना बनाई, लेकिन वो अकेले इस काम में सफल न हो पाए.
इसलिए जरासंध ने काशी के राजा के साथ मिलकर कृष्ण को मारने की फिर से योजना बनाई और कई बार मथुरा पर आक्रमण किया. इन आक्रमणों से भी मथुरा और भगवान कृष्ण को कुछ नहीं हुआ लेकिन इन आक्रमणों के दौरान काशी नरेश की मृत्यु हो गई.
काशी नरेश के पुत्र ने मांगा श्रीकृष्ण के वध का वरदान
अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए काशी नरेश के पुत्र ने काशी के रचयिता भगवान शिव की कठोर तपस्या की. जब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर दर्शन दिया तो काशी नरेश के पुत्र ने शिवजी से श्रीकृष्ण का वध करने का वर मांगा.
हालांकि भगवान शिव ने उन्हें काफी समझाया बावजूद इसके वो अपनी जिद पर अड़े रहे जिसके चलते भगवान शिव को यह वर देना पड़ा. वरदान के रुप में भगवान शिव ने काशी नरेश के पुत्र को एक कृत्या दी और कहा कि इसे जहां मारोगे वह स्थान नष्ट हो जाएगा. लेकिन किसी ब्राह्मण भक्त पर उसे फेंकने पर इसका प्रभाव निष्फल हो जाएगा.
श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र से जलकर राख हुई काशी
भगवान शिव से वरदान में मिली कृत्या से काशी नरेश के पुत्र ने द्वारका में श्रीकृष्ण पर प्रहार किया लेकिन वो ये भूल गए कि श्रीकृष्ण खुद एक ब्राह्मण भक्त हैं. जिसके चलते वह कृत्या द्वारका से वापस होकर काशी गिरने के लिए लौट गई. हालांकि इसे रोकने के लिए श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र कृत्या के पीछे छोड़ दिया.
काशी तक सुदर्शन चक्र ने कृत्या का पीछा किया और काशी पहुंचते ही उस कृत्या को भस्म कर दिया. लेकिन सुदर्शन चक्र का वार अभी शांत नहीं हुआ था, यही वजह है कि सुदर्शन चक्र से काशी नरेश के पुत्र के साथ-साथ पूरी काशी जलकर राख हो गई.
श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र – सुदर्शन चक्र से जलकर भस्म हुई भगवान शिव की इस नगरी को फिर से बसाया गया. बताया जाता है कि वारा और असि नदियों के बीच में होने के कारण इस नगरी का नाम वाराणसी रखा गया और इसे ही काशी नगरी का पुनर्जन्म माना जाता है.