छोटी उम्र में बच्चे खेलना, कूदना, और मौज मस्ती करना जानते हैं.
लेकिन इस उम्र में अगर बच्चे इन सब कामों से कुछ अलग हट के करते हैं तो ताजुब होता है.
ये ख़याल आता है कि इतनी कम उम्र में इतना सब कैसे कर सकते है!
कुछ ऐसा ही काम इन बच्चों ने भी किया, जो दुनिया के और बच्चो के काम से अलग और विचारणीय है.
तोआइयेजानतेहैविस्तार से
दिल्ली में कुछ मजदूर बच्चे जो सड़क पर काम करते थे, उन लोगो ने मिलकर अपना अखबार निकालना और बेचना शुरू कर दिया.
इस अखबार का नाम बालकनामा रखा गया.
यह अखबार दिल्ली के गौतम नगर ने चलाया जा रहा है.
इस अखबार के पत्रकार बच्चे ही हैं और बच्चे ही मिलकर इस अखबार को निकालते हैं. इस अखबार की शुरुवात एक बच्ची चांदनी ने की जो कचरा उठाने जाती थी.
बालकनामा अख़बार में मुख्य एडिटर का काम चांदनी ही करती है, जिसने 5 साल की उम्र से यह काम करना शुरू किया. जब चांदनी के पिता की मौत हो गई तब घर की सारी जिम्मेदारी चांदनी पर आ गई जिसके कारण चांदनी कूड़ा कचरा उठती थी.
इस अखबार में १८ साल के ज्यादा उम्र के लोगो को सलाहकार बना दिया जाता है.
इनके पास हर जगह में अब तक 2-2 पत्रकार है, जो इस अख़बार की सारी खबरे बटोरते है. यह सारे बच्चे सडक पर काम करने वाले कचरा उठाने वाले ही हैं.
इस अखबार का नेटवर्क दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश और हरियाण तक फैला हुआ है. इस अखबार में बच्चो पर हो रहे अत्याचार और जुर्म की खबरें छपती है.
इस अखबार से अब 10000 बच्चे अब तक जुड़ चुके है, जो बच्चे लिखना नहीं जानते वे अपनी खबर बोलकर बताते है.
इस अखबार में इन बच्चो की मदद चेतना नामक NGO भी करता है.
कई बार बच्चे यह अखबार मुफ्त में बाँट देते हैं ताकि लोगो तक उनकी बात और अखबार के समाचार पहुँच सके.
इस अखबार बालकनामा की कीमत मात्र २ ही है, जो बाकी अखबार के मुकाबले कम है .
बच्चों की इस पहल से इनकी पत्रकारिता और रचनात्मकता कार्यों पर रूचि बनी रहेगी, जिससे यह बच्चे मजदूरी भीख मांगने और अन्य बाल अपराधी बनने से बच जायेंगे.
आप जब भी दिल्ली रास्ते से गुजरे और आपको यह अखबार बालकनामा दिखाई दे तो जरुर ख़रीदे ताकि यह मासूम बच्चे अपने जीवन में सफल हो सके और इनका भविष्य उज्वल बने .