इस शिवलिंग की भी रावण ने लगातार 12 वर्षों तक तपस्या की. हर रोज़ रावण 100 कमल पुष्प शिव को चढ़ाता था. रावण की तपस्या को भंग करने के लिए एक दिन ब्रह्मा ने एक पुष्प कम कर दिया. जब रावण को पुष्प नहीं मिला तो रावण ने शिव के चरणो में अपना शेस्श काट कर अर्पित कर दिया. ये देखकर शिव अतिप्रसन्न हुए और रावण के पेट में अमृत कलश स्थापित कर दिया.
रावण की भक्ति देख कर शिव ने कहा कि इस मंदिर में शिव की उपासना से पहले रावण की पूजा होगी, ऐसा नहीं करने पर शिव की अर्चना व्यर्थ मानी जाएगी. तभी से इस स्थान पर शिव से पहले रावण की अर्चना की जाती है.
इस मंदिर से पहले शनि देव का मंदिर है. गाड़ियाँ आदि वाहन केवल वहीँ तक जा सकते है उसके आगे की 2 किलोमीटर की यात्रा पैदल ही तय करनी पड़ती है. उदयपुर क्षेत्र में सबसे पहले होलिका दहन भी यहीं अवारगढ़ किले के पास कमलनाथ मंदिर में ही होता है.