सोने की लंका किसने जलाई ?
अगर किसी ने ये सवाल पुछा तो लोग उसे बेवकूफ समझेंगे. क्योंकि हम सब जानते है कि लंका दहन बजरंगबली ने किया था.
लेकिन यदि आपको ये कहा जाए कि लंका दहन हनुमान ने नहीं माता पार्वती ने किया था तो ?
नहीं मानते.. तो चलिए आज आपको बताते है हनुमान और लंका दहन के बारे में दो ऐसी कहानियाँ जिसकी भूमिका हनुमान के जन्म से पहले ही लिख दी गयी थी.
पहली कथा
हनुमान की माता अंजना एक राजकुमारी थी. खूबसूरत होने के साथ साथ वो बहुत नटखट भी थी. एक बार वन में विचरण करते हुए उन्होंने ध्यान मग्न ऋषि को देखा.
ऋषि की शक्ल वानर जैसी थी, ऐसी शक्ल देखकर अंजना ज़ोर जोर से हंसने लगी. उनकी हंसी से ऋषि का ध्यान भंग हो गया. अपने रूप पर घमंड और ऋषि की शक्ल का मजाक उड़ाने का पता चलने पर ऋषि अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने अंजना को श्राप दिया कि वो एक वानर कन्या में बदल जाए.
श्राप के असर से अंजना वानर कन्या बन गयी और उसका घमंड चूर हो गया. अंजना ने ऋषि से क्षमा मांगी तो द्रवित हो ऋषि ने कहा कि यदि भगवन शिव पुत्र रूप में अंजना के जन्म लें तो उसे इस श्राप से मुक्ति मिल जायेगी.
यह सुनकर अंजना न्हाग्वान शिव की अनन्य आराधना में लग गयी. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने वरदान दिया कि वो अंजना के पुत्र के रूप में जन्म लेंगे.
जब पार्वती को इस बात का पता चला तो उन्होंने शिव से कहा कि क्या वो भी धरती पर अवतरित हो सकती है?
भगवान् शिव ने कहा कि वो अंजना के बल ब्रह्मचारी हनुमान के रूप में जन्म लेंगे इसलिए पार्वती के साथ नहीं रह सकेंगे.
भगवान शिव की ये बात सुनकर पार्वती ने कहा कि वो वानर रुपी शिव की पूँछ के रूप में अवतार लेंगी जिससे हनुमान में शिव और शक्ति दोनों का अंश होगा और वो अत्यंत बलशाली होंगे.
इस प्रकार माता अंजना के भगवान् शिव ने वानर रूप में जन्म लिया और उनको श्राप से मुक्ति दिलाई. हनुमान की पूँछ के रूप में पार्वती थी.
दूसरी कथा
धन के देवता कुबेर ने भगवान शिव की आज्ञा से माता पार्वती के लिए एक सोने का महल बनवाया. ये महल सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में अद्वितीय था. जब रावण ने इस महल को देखा तो उसने इस महल को हासिल करने का सोचा.
भगवान शिव को युद्ध में तो रावण हरा नहीं सकता था इसलिए उसने ब्राह्मण वेश धरकर छल से भगवान शिव से वो स्वर्ण महल दान में ले लिए.
जब माता पार्वती को पता चला कि उनके लिए बनवाया गया महल रावन ने छल से छीन लिया है तो उनके क्रोध की सीमा नहीं रही.
भगवान शिव ने पार्वती को शांत करते हुए कहा कि जब त्रेता युग में मैं हनुमान के रूप में जन्म लूँगा और तुम मेरी पूँछ के रूप में जुडी होगी तब तुम रावण को उसके कर्मों की सजा दे देना.
इस प्रकार जब शिव के अवतार हनुमान माता सीता को देखने लंका गए तो हनुमान की पूँछ रुपी शक्ति पार्वती ने रावण की स्वर्ण लंका को जलाकर रावण के द्वारा किये गए छल की सजा दी.
देखा आपने हमारी पौराणिक कथाओं में हर एक कथा के पीछे कोई ना कोई कारण छुपा है. हर घटना भूतकाल की किसी घटना की ही परिणिति है.