इस गाँव की एक ओर खास बात है.
जब से बाबा ने 300 साल पहले जीवित समाधी ली थी उसके बाद से ही इस गाँव में मृत्यु के बाद किसी का अग्नि संस्कार नहीं होता है अर्थात मृत शरीर को जलाया नहीं जाता है. मृत्यु होने के बाद व्यक्ति को उसके खेत या ज़मीन में ही समाधी दे दी जाती है.
इस मंदिर की सार संभल बाबा के वंशज ही करते है.
मंदिर के ये महंत भी बाबा की तरह ही जीवित समाधी लेते है. इसका मतलब है कि जब उन्हें बहन हो जाता है कि उनका अंत समय आने वाला है तो महंत अपने उत्तराधिकारी को मंदिर का भर संभलवाकर ध्यान समाधी में लीं हो जाते है और अपने प्राण त्याग देते है.